एक बिटिया माॅ की कोख में 
उम्मीद लगायी बैठी थी 
आऊंगी जब बाहर मैं
हंस जायेगी माॅ पीड़ा मे भी
पिता खुशी से नाचेंगे 
लड्डू सबको बांटेंगें
और बनूंगी गुङिया मैं
माॅ मेरे बाल बनायेंगीं 
मुझको लाड़ लङायेंगी 
देख देख मेरी लीला
याद करेंगी अपना बचपन 
पढ लिख कर मैं नाम करूंगी 
पापा का सम्मान बनूंगी 
जीवित गुड़िया बनकर मैं 
जीवित खिलोने की पर्याय बनूंगी 
पर नासमझ नहीं समझी 
जग इतना निर्दय होता है 
खुद की बिटिया का हत्यारा
क्या उसका बाप कभी होता है 
लाश बनी वह बाहर आयी 
निर्दय को दया न आई 
एक खिलोना बनने से पहले
नर क्यों तूने उसे तोड़ दिया 
पिता की गरिमा से गिरकर
क्यों हत्यारा बन बैठा
 मात तू भी साथ पिता के
यह भी कैसा अचरज है 
तू भी बेटी किसी पिता की
इसको तू क्यों भूल गयी 
अगर न आती तू दुनिया में 
मेरी तरह दी जाती मार
कैसे करती दीदार जगत का
समझा दे मुझको यह बात
तुमसे न कभी अब बात करूंगी 
अब ईश्वर से करूं सबाल
काहे तू बेटी बना भेजता
हत्यारों के घर में आज
कुछ ऐसा कर दो कुछ ही दिन 
बंद करो बेटी निर्माण 
 देखूं कैसे बंश बढेगा 
टूटेगा जग का अभिमान 
दुआ करेंगे फिर बेटी को
यज्ञ करेंगें मुझे पाने को
बेटा बेटी भेद भुलाकर 
जग पकड़ेगा सच्ची राह 
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *