जाने क्या होता है समय यात्रा
जिंदगी है अब निकलती हुई
अपने हाथों से रेत की तरह
दिन ब दिन फिसलती हुई
इस यात्रा का पहला दौर
जो सुहाना बचपन का बीता
उछल कूद मौज मस्ती में
न किसी बात की चिंता न फिक्र
बारिश के पानी व कागज की कश्ती में
जब आये किशोर अवस्था तीसरे पड़ाव में
तो उलझ कर रह गए कुछ किताबों में
सवाल तो समझ जाते फ़ँस जाते जवाबों में
जैसे तैसे नैया को पार किया, पर यार
दौर वो आशिकी वाला आ चला
अब कहीं भी न लगता मेरा दिल
ढूँढे न जाने कौन सी मंजिल
एक शहजादा दिल को भा गया
मुझे प्रेम का रोग लगा गया
घर वालों को सब समझ में आ गया
पकड़ कर एक वर मेरा ब्याह करा दिया
अब तो भैया घर की जिम्मेदारी में ही
चक्की पिसती कटेगी उम्र हमारी
बाल बच्चों को पालते पालते
भूल गए सब अपनी ख्वाहिशें
पल गए बच्चे अब लग गए अपनी लाइन
कर शादी बाँध दिया प्रेम की डोरी से
सब अपनी गृहस्थी में हो गए मशगूल
हम समय यात्रा का चौथा पड़ाव पर
आकर हो गए बिल्कुल फिजूल
पर हमारा भी दिल दरिया है
सब गम हँस कर सह लिया है
अपनी पोती में अपना मन लगाएंगे
बाकी बचे वक़्त में प्रभु को भजन सुनाएँगे…..
नेहा शर्मा