जीवन की कठिनाई से संभावनाऐं मरा नहीं करती
वो देखो हरित हो चला कङी धूप सहकर अमलतास भी।
जो  अन्दर था पनप रहा,
,वही तो आएगा बाहर भी।
सूख गया मूल पेंङ,
और काली पङ गई टहनियां 
पत्ते भी न सह सके
 जब तीखी हवा की जलन
और बिखर गए हवाओं संग।
कुछ  जब रहा न साथ तब भी
खङा रहा अमलतास कङी धूप सह कर भी 
ऑर करता रहा जीवन का संचार
अन्तस और  बाहरी भी।
बीज फलियों का संरक्षण
बिखर गए  जब सब,,,यह भी तो बिखरेंगे
पनप कर पूर्ण बनेंगे 
जब होगा नवीन अवसर। 
ओर कोपलें होंगी प्रस्फुटित
 हरे ऑर स्वर्ण रंग में,
फिर पक्षियों का बसेरा 
होगा इसके भी  डाल डाल पर।
और कलरव का गान सुन
झूमते पल्लव फिर  करेंगे 
बीज मंत्र का यशोगान निरंतर!
जीवन सुमधुर,,,और नित्य ही
सृजित होते,,,नवीन  अवसर,,प्रवीण अवसर। 
कठिनाईयों से संभावनाऐं मर नहीं करतीं
वो देखो हर हो चला कङी धूप सहकर अमलतास भी।
        डॉ पल्लवीकुमारी”पाम “
        अनिसाबाद, पटना बिहार
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