चंचल शाम को पौधों में पानी दे रही थी, तभी हिमेश का दफ्तर से आना होता है।

” आप आ गए, मैंने तो देखा ही नहीं। “

” मैं तो बस तुम्हें ही देख रहा था, तुम कितना प्यार से सहेजती हो इन्हें ! “

” हां, मैं प्यार भी करती हूं और ध्यान भी रखती हूं पर…. देखो ना ये पौधा मुरझा गया है…” चंचल ने उदास होकर अपनी पलकें नीचे झुका कर एक आह भरते हुए कहा ।

हिमेश ने ढाढ़स बंधाते हुए कहा, ” कभी कभी हो जाता है, हो सकता है तुम जो दे रही थी वो इसकी जरूरत ना हो और वो झेल नहीं पाया। अगली बार ध्यान रखोगी तो यह भी खिल उठेगा। बस इसकी जरूरत को समझना होगा, मतलब कितनी धुप देनी है कितना पानी देना है।”

बात करते करते दोनों कीचन तक आ गए, चंचल ने हिमेश के हाथ से बेग लिया और उसे पानी दिया। हिमेश वहीं रसोई में ही चंचल के साथ बतियाने डाइनिंग टेबल की चेर निकाल कर बैठ गया। चंचल ने गैस पर चाय चढ़ा दी, वह अब भी सोच में डूबी हुई लग रही थी।

” क्या हुआ, संजय नहीं दिख रहा ! अब भी नाराज़ है मुझसे ? ” हिमेश ने सुबह अपने बेटे से जो बात हुई थी उसे ध्यान में लेकर कहा ।

” नहीं नाराज़ तो नहीं, वो पढ़ने बैठा है अंदर कमरे में है।” चंचल ने सिर झुकाकर ही जवाब दिया ।

” तो क्या तुम नाराज़ हो मुझसे, क्या करूं ! संजय का १२ थ है, अगर वो नहीं पढ़ेगा तो आगे कैसे बढ़ेगा ! हमारे पास कौन सा पुश्तैनी कारोबार है जो हम उसे सौंप देंगे। महेनत करेगा, अच्छे मार्क्स लाएगा तभी तो अच्छी नौकरी मिलेगी।” हिमेश ने निराश स्वर में कहा ।

” नहीं मैं नाराज़ नहीं बस थोड़ी उदास थी यह सोच कर कि कहीं संजय डीप्रेशन में ना चला जाए। आप सही कहते हैं कि उसे मन लगा कर पढ़ना चाहिए पर गुस्से में आप कुछ शब्द ग़लत बोल गए। जैसे पढ़ाई पर बहुत खर्च किया, छोड़ दो मत करो, अगले साल गराज खुलवा दूंगा करना मजूरी आटे दाल का भाव पता चल जाएगा ….. ये सब बातें उसे मानसिक रूप से प्रभावित कर गई, वो रो रहा था बोला नहीं पढ़ना । आपसे नाराज़ नहीं था, बस कहने लगा मैं पापा के पैसे वेस्ट नहीं जाने दूंगा। मैं महेनत करके कमाकर लाउंगा। पढाई नहीं करनी । आप ही बताइए क्या करती, बड़ी मुश्किल से संभाला है। “

हिमेश सब सुनता रहा और खामोश रहा जैसे एक धक्का सा लगा हो ।

तभी चाय बन गई चंचल ने सर्व करते हुए कहा, ” बुरा मत मानिएगा, जैसे आप पौधों के बारे में इतना समझते हैं वैसे ही आपके बेटे को आपकी समझ की जरूरत है । मैं यह नहीं कहती कि उसे पढ़ना नहीं चाहिए पर हो सकता है कि उसकी धूप और पानी की आवश्यकता अलग हो । उसे कौन सा पेड़ बनना है यह तो तय है बस हमें उसकी जरूरत का ध्यान रखना है।”

फिर चंचल ने अपना हाथ धीरे से हिमेश के हाथ पर रखा और कहा, ” देखो कहीं हमारा पौधा मुरझा ना जाए ..” कहते हुए चंचल की आंखों से आंसू बह निकले, हिमेश की भी आंखें लबलबा गई। हिमेश ने चंचल के सिर पर हाथ रख उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा,
” कुछ नहीं होगा हमारे बेटे को, उसे जो बनना है बने , जो करना है करे , मैं तो बस तुम दोनों को खुश देखना चाहता हूं। तुम सही कहती हो नियती ने सब तय कर रखा है फिर दबाव डाल कर उसे मानसिक रूप से तनाव देना ठीक नहीं है। हम दोनों उसका हौसला बढ़ाएंगे, उसे आगे बढ़ने में मदद करेंगे। मैं बहुत खुश नसीब हूं कि तुम मेरे जीवन में मेरी संगिनी बन कर आई, तुमने मेरी आंखें खोल दीं मेरी चतुर्वेदी चंचल..” कहते हुए हिमेश ने चंचल को मुस्कुरा कर गले लगा लिया ।

दोस्तों हम अपने सामने चल रही गतिविधियों को बहुत हल्के से समझ लेते हैं पर जब उन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है तो हम भूल जाते हैं कि हौसला रखने से ही हल मिलेगा। जीवन में अनेक ऐसे नन्हे उदाहरण हैं जिनसे हमें बहुत कुछ सिखने को भी मिलता है लेकिन जिंदगी की दौड़ में हम फुर्सत के पल निकालना ही भूल जाते हैं। शायद इसीलिए तकलीफ़ बढ़ती चली जाती है।

कहानी अंत तक पढ़ने के लिए सहृदय आभार । आपकी क्या राय है कमेंट बॉक्स में जरूर लिखिएगा। मुझसे जुड़े रहने के लिए मुझे फोलो अवश्य करें। और कहानी पसंद आए तो उसे लाईक दे कर मेरा हौसला अवश्य बढ़ाएं ।

धन्यवाद

आपकी अपनी

(Deep)

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