जीवनसाथी साथ तुम्हारा 
सदा ही मन को भाता है
छूट जाते जब रिश्ते सारे
ये अंत तक साथ निभाता है
जीवन संध्या में आते-आते
जब रिश्तों का साथ छूट सा जाता है
ससुराल-मायका पास नहीं होता
बड़ों का साया विलग हो जाता है
बेटियाँ  जब  विदा हो जाती
बेटे अपनी नीड़ में खो जाते हैं
तब साथ निभाते एक दूसरे का
जीवनसाथी ही काम आते हैं
लाख शिकायतें हों एक-दूजे से
पर हर बात ध्यान में रखते हैं
प्रेम को पल-पल फिर जीते
आपस के साथ में मग्न रहते हैं
बातों ही बातों में खूब छेड़ते
पुरानी बातों में समय को खोजते हैं
ऐसे ही प्यार-मनुहार से अपनी
हस्ती और मस्ती जिंदा रखते हैं
हो जाये एक भी दूर कुछ पल
दूसरा बेचैन  सा  हो जाता है
हो जाये कुछ दुर्भाग्य  से यदि तो
दूसरा अस्तित्वहीन हो जाता है।।
आशा झा सखी
जबलपुर  (मध्यप्रदेश)
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