तनहा जीवन बुढ़ापा है-जवानी चली गई
बचपन चला गया, ये जवानी चली गयी।
जिंदगी की कीमती,ये निशानी चली गई।
बचपन में साथ खेले,झगड़े भी साथ-2।
वो दोस्त गुम कहाँ हैं,कहानी चली गयी।
पढ़ने लिखने और,कमाने में समय गया।
गृहस्थी के बोझ में, मनमानी चली गयी।
बच्चों की परिवरिश,दिखती रही सामने।
इनके ही पीछे सारी,मेजबानी चली गयी।
उनके भविष्य की,चिंता में रहे रात-दिन।
कोई फ़िक्र नहीं,मौज मस्तानी चली गई।
शादी ब्याह करने की,जिम्मेदारियां बढ़ीं।
इसी फिकर में चेहरे की,रवानी चली गई।
आया अब बुढ़ापा तो,शक्ति ना रह गयी।
देखते-2 ये सब कुछ,जवानी चली गयी।
बचपन रहा न अब,जवानी भी चली गई।
जिंदगी की कीमती,ये निशानी चली गई।
बचपन एवं बुढ़ापे के,इतने लम्बे सफर में।
देखते-2 सोचते-2,ये जिंदगानी चली गई।
यादों में एक तनहा,लम्हा तो ही तो शेष है।
बचपन चला गया,ये जवानी भी चली गई।
बच्चे सेटिल्ड हुए साथ बहुरानी चली गई।
घर की खुशी व रौनक ये बहाने चली गई।
आया गया बुढ़ापा अब जवानी चली गई।
मियां-बीबी पड़े सुरक्षा निशानी चली गई।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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