सुप्रभात साथियों!
आज हम बात करने जा रहे हैं “जागृत तन्द्रा” के विषय में – जो हमारे लिए सर्वाधिक घातक सिद्ध होती है। इसको बढ़ावा देने वाले तथा समाप्त करने वाले हम स्वयं ही होते हैं।
लापरवाही, असावधानी, गैरजिम्मेदारी, आलस्य एवं प्रमाद जैसे भयंकर दोष “जागृत तंद्रा” के कारण पैदा होते हैं । यह साधारण दृष्टि से देखने पर बहुत छोटे मालूम पड़ते हैं, इनसे किसी भयंकर अनर्थ की आशंका नहीं मालूम पड़ती, इसलिए अधिक ध्यान नहीं दिया जाता, परन्तु स्मरण रखना चाहिए कि “छोटी-छोटी” आदतों से ही जीवन निर्माण होता है । छोटे-छोटे परमाणुओं के संघटन से कोई बड़ी वस्तु बनती है । दवाओं में पड़ने वाली औषधियों में थोड़ा अंतर कर दिया जाय तो उनके गुणों में भारी अंतर आ जाता है । इसी प्रकार छोटे-छोटे गुण और दोषों का अंतर जीवन की अंतिम सफलता में फर्क कर देता है ।
“जागृत तंद्रा” में विभोर मनुष्य वास्तव में आधा मनुष्य है । किसी आदमी का एक हाथ, एक पैर, एक कान, एक आँख नष्ट हो जाय तो उस बेचारे की बड़ी दुर्दशा होगी । इसी प्रकार जो अर्द्ध तंद्रा में पड़ा रहता है, वह अधूरा मनुष्य जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने वाला योद्धा नहीं बन सकता ।
जीवन को धूल में मिला देने वाला यह सत्यानाशी रोग जितना भयंकर और घातक है, उतना ही चिकित्सा में सुलभ भी है । ज्वर, खाँसी, दस्त आदि ऐसे रोग हैं कि उनको दूर करने के लिए किसी जानकार चिकित्सक से सलाह लेने की और अमुक औषधियाँ खरीदने और सेवन करने की आवश्यकता पड़ती है । परंतु इस रोग के निवारण में इस प्रकार का एक भी झंझट नहीं है। रोगी जब चाहे कि मुझे इस रोग से पीछा छुड़ाना है, उसी समय वह इससे छुटकारा पा सकता है। “जागृत तन्द्रा” का घातक रोग रोगी के सहयोग पर निर्भर है । यह रोग किसी को उसकी इच्छा के विरुद्ध अपना शिकार नहीं बना सकता । जैसे ही मनुष्य यह दृढ़ संकल्प करता है कि “मैं जागरूक रहूँगा, लापरवाही को पास भी नहीं फटकने दूँगा।” वैसे ही वह अपना बोरिया बिस्तर समेट लेती है। कहते हैं कि चोर के पैर बड़े कमजोर होते हैं। घर का मालिक चाहे वह कमजोर ही क्यों न हो जाग पड़े और सावधान हो जाय तो घर में घुसे हुए हट्टे-कट्टे पहलवान चोर को भी भागना ही पड़ता है । मन के सजग हो जाने पर लापरवाही भी चोर की तरह भाग खड़ी होती है।
अब चलती हूँ अगले पड़ाव की ओर निश्चित ही स्व-विकास के लिए इस तथ्य को अमल में लाना चाहिए।
धन्यवाद!
राम राम जय श्रीराम
सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक विचार,रुद्रपुर,उत्तराखंड।
