धधक रहा है देश,आज हम भय में सारे।
नौजवान को समझाकर के,सब ही हारे।।
नीति,नियति की बातें होतीं,हिंसा फैली।
देखो तो सबकी ही चादर दिखती मैली।।
शासक दोषी,नौजवान भी,कुछ तो देख तमाशे।
दूर बैठकर चुप हो खाते,शक्कर पगे बताशे।।
देशभक्ति की बातें करते,पर लाते अँधियारे।
जलता मेरा देश,मूक हैं देखो सारे।।
आग बुझेगी कैसे अब यह,कोई तो बतलाये।
नीतिनियंता,पालनकर्ता,कोई राह सुझाये।।
आँखों से आँसू बहते हैं,लखकर यह बर्बादी।
फूँक रही है निज का ही घर,नौजवान आबादी।।
अंधकार में दीप बंधुवर,कौन जलाएगा।
कौन भारती के बेटे का फर्ज़ निभाएगा।।
देशविरोधी लोगों के तो,देखो वारे-न्यारे।
जलता मेरा देश,मूक हैं देखो सारे।।
मारकाट है,हिंसा,मातम,अवसादों ने घेरा।
उजियारा तो दूर हो गया,छाया घोर अँधेरा।।
विध्वंसक सबके मन हैं अब,भटक रहे सब।
अपने ही सारे नित हमको,खटक रहे अब।।
देशभक्त वह ही जो अपना देश सँवारे।
समझो युवा,आज मत फेंको,मूरख बन अँधियारे।।
मंगलगान नहीं होता अब,गम बस द्वारे।
जलता मेरा देश,मूक हैं देखो सारे।।
–प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
        मंडला,मप्र
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प्रमाणित करता हूं कि प्रस्तुत रचना मौलिक ल अप्रकाशित है–प्रो.शना खरे
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