जब भी होता है वह अकेला,
या फिर किसी महफ़िल में,
लबों पर नाम सिर्फ उसी का होता है,
गीत बस उसी का होता है, 
दर्द सिर्फ उसी का होता है,
जिससे वह करता है प्यार।
सभी उससे पूछा करते हैं,
उसके गीतों की प्रेरणा कौन है ?
तन्हाई में जीने की ताकत कौन है ?
राह में आगे बढ़ने की हिम्मत कौन है ?
हंसने और मुस्कराने की वजह कौन है ?
लेकिन वह किसी कुछ नहीं कहता है।
तब वह हो जाता है खामोश,
निरुत्तर और खुद एक सवाल,
मुस्कराता है खुद ही खुद में,
या फिर हो जाता है उदास,
या करके कोई बहाना फिर, 
दूर कहीं वह चला जाता है।
तब देता है कोई उसको आवाज,
करता है कोई उसके आने का इंतजार,
ऐसे में वह करता है वक़्त बर्बाद,
करता है शब्दों की तलाश,
जवाब किसी को देने को, 
प्यार अपना पाने को वह,
रंग भरता है अपनी कलम से, 
मन के खाली पन्नों पर , 
अपनी जिंदगी को हंसाने को।
शिक्षक एवं साहित्यकार- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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