अक्सर बच्चों को सिखाया जाता है,
कक्षा में उनको पढ़ाते वक़्त,
हम सबका मालिक है,
सब मनुष्य समान है,
हम एक ही ईश्वर की संतान हैं।शिक्षकों की नसीहत होती है,
हिंदू- मुस्लिम सब भाई भाई है,
सबकी रगो में बहने वाला लहू एक है।और ऐसा भी बताया जाता है,
समाज के बुजुर्ग- समझदारों द्वारा,
कि सभी धर्मों की शिक्षा का सार,
और मकसद एक ही है।लेकिन फिर यह अलगाव क्यों है ?
काले- गौरे यह भेद क्यों है ?
क्यों नहीं मिटी हैं अभी तक खाईयां ?
छुआछूत- क्षेत्रवाद- भाषावाद की,
अमीर- गरीब और राजा- रंक की।क्योंकि कोई भी नहीं कहना चाहता है,
और कोई भी देखना नहीं चाहता है,
अपने को छोटा किसी से।और यह सब जुबानियाँ है,
जबकि हकीकत कुछ और है।शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)