सुनकर अपने मन की 
पंख फैलाकर उड़ना है
खुले आसमान मे
ऊंची उड़ान भरना है
परिन्दे को उड़ता देख
मन भी चंचल हो गया
पर मेरे भी कब खुले
आसमान मे उड़ान भरेंगे
बहुत रह लिए पिंजरे मे
आजादी क्या है भूल गए
आसान नही है तोड़ना
पिंजरे की इस कैद को
उड़ान भरने के लिए   इस 
पिंजरे का मोह छोड़ना होगा
पड़ी है बेड़ी  रिश्तों की जो
उनको तोड़ना ही होगा
मन की अपने सुनना
नही सुनना जहां की
पाने उन मुकामो को
जो पीछे छूट गए
देखे थे जो सपने
वह भी टूट गए
उन्ही की खातिर अब
होसलो के साथ है उड़ना।।
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