धरती कहे पुकार के आसमाँ को छू लो।
खड़े हो जिस धरा पर उसकी छत्रछाया आसमाँ है।
बड़ों का मान रखना, छोटों का ख्याल रखना,
संग चलने वालों का साथ संजोए रखना।
हौसले बुलंद रखना,आज सम्हाले रखना, कल सजाते चलना।
जिसने यहाँ है भेजा, उससे नाता बनाए रखना।
हर पल को जीते चलना, अगला स्वयं मिलेगा,
जानकर दुःख न देना,गर त्रुटि हो गई, क्षमा ज़रूर लेना।
चढ़ते चलो सोपान, दूर नहीं वो दिन है,
इक दिन⭐आसमान⭐छू ही लेना।
सीखने-सिखाने के क्रम में पीछे कभी न रहना।
कुछ पाकर ही रहोगे,देते हुए ही चलना। 
भरपूर मूंठ जो दोगे गर ज़िन्दगी में,
आगार भरा रहेगा,खाली कभी न होगा।
मुट्ठी बाँधे आए हो,खुले हाँथ ही जाना।
बस सुकर्म करते रहना, दूर कुछ नहीं है।
इक उछाल मार कर देखो, आसमाँ छू ही लोगे।
           रचयिता —
            सुषमा श्रीवास्तव 
               मौलिक कृति
सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड। 
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