नंन्हे पँखो को खोले,
हवा का रुख ये बोले;
सीख मेरे संग उड़ना,
पंजो से धरातल को जकड़ना;
भर उड़ान ऊँची,
पूरी कर हर रुचि;
डाल डाल पत्थर पहाड़,
थोड़ा ठहर फिर से दहाड़;
मंज़िल अपनी खोज के,
साध लक्ष्य रोज़ के;
पग पग आगे बढ़ता जा,
आकाश में ऊंचा उड़ता जा;
कठिनाई कई आएंगी,
तुझको बहुत डराएगी;
बस याद रख मंज़िल तेरी,
सब मुमकिन है मत कर देरी;
फिर ठहर ज़रा और सांस ले,
अपना लक्ष्य फिर साध ले;
अब उड़ जैसे आकाश चीरना,
बादलो के परे देखना;
तेरी मंज़िल नज़र आएगी,
छू लो आसमाँ चिल्लाएगी;
गुरुर न उचाई पे करना,
लौट तुझे है ज़मी पे उतारना;
~राधिका सोलंकी (गाज़ियाबाद)