गरजता बादल हरषाता है मन,
जियरा झूमे संगीत सुनाता है मन,
छाता कब कहाँ किसे याद रहे,
जब बारिश की बूँदें लुभाता है मन।
बचपन का बचपना याद दिलाता,
बारिश की फुहारें चेहरे पर आता,
मस्ती में झूमते मस्तमौला हो जाते,
हाथ का छाता जाने कहाँ उड़ जाता।
बारिश में भींगे,मिले जब दो युगल,
छाता ने दिया संग होने का शगल,
शर्मीले नयन एक दूजे से टकराए,
प्रेम के फूटने लगे धीमे धीमे कोंपल।
ढ़ले जीवन,आता शनैः शनैः बुढ़ापा,
मन की चाहत निकले कहीं अकेला,
उबड़ खाबड़ रास्ते सपने हैं सँजोए,
ढ़लवा राह,साथी बन जाता है छाता।
रिमझिम रिमझिम सी होती बरसात,
धूप का फैलता है गर्म गर्म उजास,
हाथ में ले निकले हम रंगीन छाता,
हर शय से करत रहता है ये बचाव।
आरती झा(स्वरचित व मौलिक)
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