चमक उठीं, बिजली बादल में
कडका- कडका शोर हुआ
उभर चला फिर मेघ घुमड़कर
 पानी चारों ओर हुआ
पानी बरसा छम-छम-छम,
छाता लेकर निकले हम ।
पैर जो फिसला गिरे धड़ाम,
छाता नीचे उपर हम ।।
हवा बह रही ठंडी ठंडी
बूंदे तिरछी गिरती है
पूरब से जो छठी छटाई
पश्चिम आकर गिरती हैं
घुमड़ घुमड़ कर बादल आए
देखो धरती हुई दीवानी
सन सन सन सन हवा चली
छम छम छम छम बरसा पानी
छाता ओढ़े वन में
 भीग रहा है चरवाहा
गैया भीग रही है उसकी
भीग रहा है हरवाहा
मुनि का घरौंदा
 टप टप टप टप चूता है
नाली में वे बहा जा रहा 
जाने किसका जूता है
जब जब मैं भीगा
तेरी याद आई
अब रहा नहीं जाता
छतरी लौटा दे भाई
मुन्नु, मुन्ना, मोहन ,रघु
सब पानी में खेल रहे
कागज की वो नाव बनाकर
धारा में है धकेल रहे
रंजना झा
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