चौदहवीं का चांद कितना सुंदर होता है,
उपमा दी जाती है सुंदरता की,
सच मे बहुत ही सुंदर
देखा इक दिन उस चौदहवीं के चांद को,
वो रात भी सुरमई थी, दुधिया जोड़े मे आई थी,
चमकता हुआ,सुंदर गोल चांदी सा था उसका मोल,
हर पल उसकी बढती कलाएँ,,
दूर तक उसकी छीटकती चांदनी ,,
उस रात अकेली ही देख रही थी उस चांद को,
इतने तारों के बावजूद भी अकेले ही अपनी चमक रखता है,
कितनी भी तारीफ करो कम है उस रात के चांदनी की,
न शब्दों मे बांध सकते है न उसकी कोई उपमा दी जा सकती है,
चौदहवीं के चांद की। ।