ये चौदहवीं का चांद भी
है आफताफ की तरह
बहुत अजीज है सबका
दिल के बहुत करीब है
ना सर पर इसके घूंघट है
ना चेहरा ढका है बुर्के से
कभी ईद का चांद हो गया
कभी करवा चौथ का
कभी लग जाता ग्रहण इसको
आसमां में छा जाता अंधकार
बेकरारी से करता
चांदनी से मिलनेकाइंतजार
होता गर ज़मीं पर तो
विवादों से याराना होता
अदालतों में पेशी होती
अखबारों की सुर्खियां बनता
शुक्र है आसमां में है
बादलों में आशियाना जिसका
इसीलिए महफूज़ है
कवियों की कल्पनाओं में।