श्याम चोर हो तुम
तुम हो छलिया बड़े
कभी माखन चुराते
कभी वस्त्र ले जाते
करके दिल चोरी सबका
फिर तुम रास रचाते
चितचोर हो तुम
माखन चोर भी कहाते
चुरा कर दिल तुम
मंद मंद मुस्कराते
तिरछी चितवन कर
बंसी की धुन पर सबको नचाते
बंसी को सुन सब
दौड़े चले आते
सुध बुध बिसरा अपनी
तुम्हारे रंग में रंग जाते।
चुराया दिल राधा का
और मीरा का सुख चैन
तुम्हारी भक्ति में जग
डूबा दिन रैन
चोर हो तुम और
तुम ही साहूकार भी
प्रेम में बंधे सब
बिन हथकड़ी के ही।
सबसे बड़ी अदालत तुम्हारी
जिसके न्याया धीश तुम
इंसाफ पर भरोसा सबको
गलत फैंसला नही करते तुम।।
