शीर्षक  – “चलो एक दीप जलाएं”

चलो एक दीप जलाएं उनके नाम, जिनके घर अँधेरा है।
खुशियाँ सब स्वप्न हो गईं, केवल दुःखों का बसेरा है।
आशाओं के बादल उड़ चले,बस निराशा ने घेरा है।
धुंध ही धुंध छाई है, कुहासों ने डेरा डाला है।
कुछ ऐसा कर गुज़रना है,
घिरे तम को मिटाना है।
सबके अंतर्तम में अब हमें,
उत्साह का दीप जलाना है।
रौशन हो जाए धरती सब,
दुःखों का साया भी न हो
चेहरों पर हो आभा प्रदीप्त,
अधरों पर खिलती मुस्कान,
आगे बढ़ने की ज्वाला हो।
दमकता भविष्य रौशन रहे,
वही चिराग तो जलाना है।
हर जीवन हो मिठास का अंबर,
अभावों की न छाया हो,
उठ कर खड़े हो जाएं।
आत्मबल पर करें भरोसा,
पराश्रय की न छाया हो।
अँधेरे की न हिम्मत हो,
दुबारा लौटकर आने की।
सुख-स्वास्थ्य का अंबार लगे, बस इक ऐसा दीप जलाना है।
भारतवर्ष की जगमग ज्योति,
विश्व का अनुपम खजाना हो।
हम भारतीयों का जाग्रत स्वप्न है,
बस एक ऐसा दीप जलाना है।

रचयिता – सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक कृति,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

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