चलो आज हड़ताल करते है,
जिम्मेदारियों से लेकर छुट्टी,
चलो, आज अपने लिए जीते है।।
कहने को घर की मालकिन हूँ मैं,
लेकिन मेरी मर्ज़ी कोई पूछता कहा है।।
सब की ख्वाईशो का इल्म रखते हुए,
मैं अपने ही ख्वाइशों का पता भुल सी गयी हूँ।।
चलो आज अपने मन का करते है,
भुलकर दुनियादारी सारी,
चलो आज बेख़ौफ़ होकर जीते है।।
बन्द करते है आज किचन का द्वार,
चौबीस घण्टे की फरमाइशों से ,
बनाकर अपने चाहतों को मुद्दा
चलो आज हडताल करते है।।
सुमेधा शर्व शुक्ला