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चलचित्र हर कीसी की ज़िन्दगी के
एक अहम हिस्सा है
जो बचपन से ही हमसे जुडा होता है
पहले की ज़माने जो
लोगो के पास मोबाइल नहीं थीं
पर ज़ब भी कोई फ़िल्म आते
तो लोग एक्कठा होजाते थे
किसी एक घर के आँगन मे या
शहर के सिनेमा हॉल मे
लोगो की भीड़ लग जाती थीं
लेकिन अब ज़ब ज़माना मोबाइल का आया
बच्चे, बड़े, छोटे और बूढ़े सबके लिए
बहुत आसान सा होगया है
घर बैठे हुए या अपना काम करते हुए भी
चलचित्र देखना पंसद करते है
बहुत से लोग होते है ऐसे
जो इस काल्पनिक व फिल्मो की कहानियो मे
अपने ज़िन्दगी के कयी जावब ढूंढ लेते
रामायण,महाभारत,कृष्णा लीला 
शिव पुराण और विष्णु पुराण जैसे 
वेदो की ऐसे बहुत से ग्रंथ 
जिसे हम किताबों मे ही पढ़ने व
सुनने को मिलता था
ज़िन्दगी मे अपने बड़ो से
पर दिल मे जिज्ञासा होते थे की 
जो पढ़ने मे और सुनने मे 
इतनी लाभदायक या प्रेरणादायक है
वो हकीकत मे कैसा होता होगा
श्री कृष्णा की लीला और श्री राम की त्याग
शिव की महिमा अनेक और
भगवान विष्णु की वो 
अपने अनेक रूप मे सृष्टि की रक्षा करना
ऐसे बहुत से सवाल
लोगो के मन मे होती थीं
पर अब ये सब देखना व
समझना इतना आसान होगया की
अब हर बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग भी
बड़े आसानी से देखने और समझने लगे है
आजकल के ज़माने मे तो
हर इंसान के ज़हन मे
सिनेमा,मूवी और सीरियल
यही नाम और ख्याल बसा हुआ है
शायद ही ये याद होगा किसीको की
इन सबको चलचित्र भी कहते है
ये भी एक ऐसी चीज़ होती है ज़िन्दगी की
जो कहीं न कहीं किसी के हकीकत से जुडा होता है
वो चाहे सीरियल हो या मूवी
जिसके चलते कोई अपने ज़िन्दगी मे
कुछ परिवर्तन भी कर लेते है
तो कोई इसे काल्पनिक समझ कर
ज़िन्दगी मे अपना राह खुद चुनते है
कभी कभी ऐसा भी होता है की
कुछ कहानियाँ हमें हकीकत के 
ज़िन्दगी की आईना भी दिखा जाती है
जिन बातों से हम अनजान होते है
ऊन अहसासों का महसूस भी करा जाते है
लेकिन सब एक जैसा भी नहीं होता
कुछ बुरे असर भी कर जाती है ज़िन्दगी मे
जिसके चलते अपनों के साथ गलत कर बैठते है
ये तो हम पर निर्भर करता है न
की क्या अपनाये क्या नहीं
ज़िन्दगी भी मुश्किल से ही मिली है
इसे किस आईने मे उतारे यह हम पर निर्भर करता है…!!
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नैना…. ✍️✍️
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