पाँचों उंगलियां निज हाथों की सभी अलग होती।
कोई छोटी कोई बड़ी  कोई मंझोली उंगली होती।
काम सभी का ही पड़ता यह मुट्ठी तभी है बँधती।
सभी उंगलियों के सहयोग से यह शक्ति है बनती।
हर घर परिवार में ऐसेही भाई बहन सभी हैं होते।
कोई बड़ा तेज फुर्तीला कोई बड़ेही सुस्त हैं होते।
तकदीरें भी अलग अलग सबकी अपनी है होती।
कोई जीवन भर संघर्ष करे कोई धनवान है होती।
कोई बने डॉक्टर इंजीनियर कोई करते ठेकेदारी।
कोई बने व्यवसायी अच्छे किसी की बेरोजगारी।
कोई करे नौकरी छोटी मोटी किन्तु रहे सरकारी।
कोई आईएएस आईपीएस पीसीएस अधिकारी।
कोई वकील जज बनता कोई नेता एवं राजनेता।
कोई ट्रांसपोर्टर बनता कोई फिल्मों में अभिनेता।
कोई शिक्षक बनाहै वही समाज का दर्पण होता।
देश को अच्छा नागरिक देता यही समर्पण होता।
अपने-2 कर्म और प्रारब्ध का ही तो यह फल है।
कहीं खुशी इफ्राद भरी है कहीं पे कोई विकल है।
कहीं जश्न होते हैं जीवन में कहीं दुःख के पहाड़।
कहीं परिवार की खुशहाली  कहीं बाधाएं अपार।
कहीं बड़े रोग से ग्रसित पड़ेहैं अस्पताल में रहते।
कहीं ना कोई बीमारी लाचारी  देखभाल में रहते।
कहीं मुकदमें आपस में चलते होती है फौजदारी।
कहीं जान भी जाती है जर जमीन जोरू बीमारी।
न कुछ लेकर आया है न कुछ लेकर ही जाना है।
तकरारें ना हों आपस में ये सब यहीं रह जाना है।
घर परिवार में जहाँ एका होता वही करे तरक्की।
दिल में प्रेम सभीके हो सुख दुःख में संग पक्की। 
दयाभाव हो मानवता हो एवं संवेदना हो दिल में।
स्वभाव विनम्र संतोषी हो तो पड़े ना मुश्किल में। 
हर मानव जीवन की अपनी ये अलग कहानी है।
सच में देखें तो पाएंगे घर घर की यही कहानी है।
आज समय  ऐसा आया है  प्रकृति हुई नाराज है।
देखें कैसे कहर है मौसम का कोरोना का राज है।
रोज प्राकृतिक आपदाओं का होरहा आगाज है।
जीवन भी पहले जैसा न अब न उसका साज है।
जब तक जियें प्यार से जी लें मनमुटाव ये छोड़ें।
थोड़े से कम में ही जी लें आपा धापी सब छोड़ें।
रहें प्रेम से खुश होकर रखें न चिंता ना परेशानी।
क्यों करते बर्बाद हैं अपनी बुढापा और जवानी।
हर मानव जीवन की अपनी ये अलग कहानी है।
सच में देखें तो पाएंगे घर घर की यही कहानी है।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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