कभी खट्टी कभी मीठी
होती है कहानी हर घर की,
तिनका-तिनका जोड़कर,
बनाते हैं एक मकान जब भी,
परिवार से ही बनता है वो घर तभी,
सुबह से लेकर शाम तक…
मिल-बांटकर करते हैं जब काम,
बना रहता सौहार्द हर तरफ…
मिल जाता है आराम,
जब काम को समझा जाता बोझ,
तब लड़ाई-झगड़ा होता रोज़-रोज़,
टूट जाते हैं रिश्ते बिना बात,
गर आ जाए किसी एक को अहंकार,
बंधी हुई मुट्ठी से ही होती तरक्की,
खुल जाए गर, बिखर जाती है ज़िन्दगी,
हर सदस्य का रखना पड़ता है मान,
हर छोटे बड़े का करना होता सम्मान,
प्यार से संभालनी होती है रिश्तों की डोर,
तभी बढ़ती है कहानी सफलता की ओर,
बात ये समझ लें छोटी-सी,
कभी खट्टी कभी मीठी,
होती है कहानी हर घर की।
© मनीषा अग्रवाल
इंदौर मध्यप्रदेश
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