नहीं है सुकूं पास किसी के,
ना किसी का कोई सच्चा साथी ।
रोते हैं सभी हँसते हुये चेहरों के पीछे,
है यही घर घर की कहानी ।
माँ – बाप बिता देते हैं जिनकी खातिर
अपनी पूरी ज़िंदगानी,
वही औलाद उनकी करती नाफरमानी ।
रोते रहते हैं वे तन्हा अकेले,
है यही घर घर की कहानी ।
लोगो को अब वास्ता नहीं किसी से
मोबाईल के हवाले कर दी ज़िंदगी,
रिश्तों की अहमियत ही नही रह गयी ,
है यही घर घर की कहानी ।
हुमा अंसारी
लखनऊ यू पी