घर घर की कहानी।नहीं नई, नहीं पुरानीकभी रूठे पिया।कभी रूठे प्रिया।कभी बहु से तंग सास।कभी बहु की ना पूरी आस।कभी बच्चों के कलोल से तंग।कभी सब मिलकर जमाये रंग।यहीं दुहराये जाते किस्से।होते घर घर के हिस्से। -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारणSpread the love Post navigation अंजान राहें!!घर घर की कहानी