कहीं सुख कहीं दुःख,
कहीं आना कानी है,
किसी एक घर की नहीं,
घर घर की कहानी है।
कहीं रिश्तों में उलझन,
कहीं बहुत खींचातानी है,
गुज़र रहा ऐसे ही बचपन,
आ जाती ऐसे ही जवानी है।
सम्भाल लो इन धागों को,
छोटी सी ये ज़िंदगानी है,
क्या पाना है क्या खोना है,
बस मिट्टी सबकी रह जानी है।
बस मिट्टी सबकी रह जानी है।
पूजा पीहू