घर का चिराग ही
घर को देता जला
बनना था जिसे लाठी
वही हाथ लेता छुड़ा
सारी उम्मीदों को
पल भर में देता तोड़
भेज देता वृद्धाश्रम
अपने जीवन दाता को
पाते जिसको बहुत
मन्नतों के बाद
ऐसा कोई मंदिर मस्जिद नही
जहां न माथा टिकाते
जन्म के समय
डॉक्टर देते जवाब
नाजुक हालत है
एक ही बचेगा जनाब
मां चाहिए या फिर
घर का चिराग
वही चिराग कहता आज
अपनी आंखें तरेर कर
किया क्या ऐसा तुमने
अलग मेरे लिए
जो भी किया वह
तो तुम्हारा फर्ज था
करते सभी अपने
बच्चो की खातिर
याद नहीउसे अपना फर्ज
भूल गया वो दूध का कर्ज
जिसका वो ऋणी है
फर्ज क्या वो तो
मानवता भी तो भूल गया
जिसने उसके जहांको
किया रोशन
उन्ही के जीवन को
अंधकार मय कर दिया।।