नाम है घरवाली का,
लड़ाई-झगड़ा करने में।
पर घरवाले भी कम नहीं होते,
बहस-झगड़े करने में।
मानाकि चूक हो जाती है,
कभी नादान घरवाली से।
पर पुरूष अपने दंभ में जीते,
बाज न आते कोतवाली से।
अक्सर सौ गुनाह पुरूषों के,
हो जाया करते माफ।
पर एकाध गुनाह भी माफ न होते,
बेशक घरवाली होती साफ।
घरवाली को बकबक यंत्र बता,
खुदा को घोषित करते सयाना।
पर खुद के लब भी कम ना चलते,
घरवाली गृहशांति की धर्ता बयाना।
            -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।
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