कोरोना का कहर,क्या कम था,
ये कड़ाके की ठंड,जानलेवा है।
अबतक बचे रहे,जो कोरोना से,
डर है कहीं ठंडक,न जान लेले।
घने कुहरे की,जो चादर बिछी है,
दिखता नहीं,इसमें रास्ता साफ।
रोड एक्सीडेंट,ऐसे में बढ़ जाता,
बिन बुलाये ये,आफत है आता।
यूँ तो ऐसे वक्त में,बचना चाहिये,
कर सकें तो करें,तौबा सफर से।
करें प्रतीक्षा,फॉग से ढका सूरज,
बाहर निकले,रास्ता दिखे साफ।
सफर ये सुरक्षित, हो तभी बाहर,
घर से कोई भी,अपने कदम रखें।
जिंदगी बड़े,काम की होती यारों,
ठण्ड,कुहरे व,कोरोना से न मारो।
घर में ही रहें,सुरक्षित रहें,बचे रहें,
यही कामना प्रभु से,सदैव मेरी है।
2021 का ये वर्ष,बीतने वाला है,
नई खुशियां ले के,नया वर्ष आये।
इस 2021 ने हमें,बहुत है डराया,
क्या-2खोया हमने,बहुत सताया।
दिन बदले सबके,अब बहुत हुआ,
देखो नये वर्ष का,सूर्य उदय हुआ।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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