ग्रहों के चक्कर में
जो उलझ गयाb
भूल गया राह अपनी
मार्ग भटक गया
नहीं  बक्शा सत्यवादी
राजा हरीश चंद्र कोभी
खुद ही सरे राह बिकवा कर
दाने दाने को मोहताज बनाया
चली जब ग्रहों की
उल्टी चाल बनना था
राजा जिसेवनवास कराया
महलों की रानी को
वन वन भटकाया
अंत में भी धरती   मां
की गोद मेंही स्थान पाया
देनी पड़ी अग्नि परीक्षा
सतीत्व के प्रमाण में
देखा तो था  मिथिला नरेश ने
अपनी सुता के लिए 
उच्चकुल राज घराना
किंतु ग्रहों की चाल ने
उसेजंगल में ही  भटकाया।
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