आज 20 मार्च 2022 गौरैया दिवस मनाया जा रहा है।आज सभी इसके संरक्षण की ओर चिंता जता रहे है। गौरैया एक ऐसा पक्षी है, जो मानव विकास के काफ़ी करीब रहा है या यूँ कहे की मानव जाति के साथ ही ये पनपा है, और हमारे घरों, छतों, आंगन में सदा फुदकता आया है।
मुझे याद है, बचपन में जब भी दादी के घर जाना होता था,वहाँ घर में खुला आंगन होता था, जहां कि जूठे बर्तन रखने के लिए एक कोना था, तो थाली में बच गये, चावल, दाल के दाने और रोटी के छोटे टुकड़े ये अपनी चोंच में दबा कर छत की तरफ जाती सीढ़ियों और टिन के बने शेड पर बैठ जाती थी और उसे तसल्ली से खाकर फिर से नीचे आकर चोंच में थोड़े दाने भरकर ले जाती थी। इसके साथ ही आंगन में जल रखने का स्थान भी हुआ करता था वहाँ भी दादी इनके लिए सकोरे और पुराने टबों में पानी रोज़ सुबह भरकर रखती थी जिससे दिन भर ये उसके आसपास चहकती, फुदकती, गर्मी में पानी में पंखो को भिगो फड़फड़
करती रहती थी, और में पूरा दिन इनकी शरारतों पर नज़र रखती थी, बहुत ही अपनी सी लगती थी ये गौरैया।
शहर जाकर पर ये कभी कभी ही दिखाई देती थी, इनकी कमी बहुत अखरती थी मुझे, क्यूंकि शहरों में आधुनिक शैली के बने रसोईघर होते और आंगन की जगह बस छोटी सी बालकनी जिसमें ये यदा कदा ही नज़र आती।
आजकल इन नन्ही चिड़ियों से मुलाक़ात पार्क में ही हो पाती जहाँ कि इनकी चाहचहाहट सुनाई दे जाती। वैसे तो अब सभी कोशिश कर रहे की घरों की मुंडेर पर मिट्टी के सकोरोंमें इनके दाना पानी की व्यवस्था कर इन्हें फिर से आसपास बसाने की, पर इसके साथ ही घर में झाड़ीदार, कटीले पौधे जैसे कि बोगनवेलिया के लगाये जाये तो इन्हें हम और आकर्षित कर सकते है।
ये प्यारी सी गौरैया हमेशा मुझे बचपन की याद दिलाती है, और यही गाना मुझे बरबस याद आ जाता।
ओ री चिरैया नन्ही सी चिड़िया
अंगना में फिर से आजा रे……….
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’
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