सूरज की किरणें, समेटे
अपने घर चला…
प्यारी सी मुस्कान लिए
दिखाएं अपनी कला..
धन्य हैं गोधूलि बेला,
थके हारे चरवाहों का
घर जाने को है मन मचला..
पशुओं के पैरों से उड़ती धूल,
धुंधला सा आकाश हुआ
देख मन हर्षित हुआ…
गोधूलि बेला, जो होती
पक्षियों जो चहचहा रही
लौटती अपने घर
साथी के संग संग..
सिंदूरी लालिमा लिए,
आसमान है सजा
दृश्य प्रकृति का अनोखा
मानो, अनंत आकाश पर
प्रेम छवि दर्शा रहा..
मंजू रात्रे ( कर्नाटक )