पिछले भाग में हमने सरवणी लौहार के रंग – रूप के बारे में पढ़ा …… अब आगे की कहानी …….
सरवणी लौहार की बहन अमरूद के पेड़ से गिर गई ।
सब उसकी तरफ भागें ,कही लड़की को ज्यादा चोट तो नही लग गई । खैरियत रही मामूली सी चोट थी । पर फिर भी मम्मी ने उसे हल्दी वाला दुध पिलाया जिससे चोट में थोड़ा आराम मिलेगा । फिर गाँव के ही एक डॉक्टर को बुलाकर थोड़ी मरहम पट्टी करवा दी । कुछ दवा भी दी और टेटनस का इंजक्शन भी लगवा दिया । फिर वो सब घर चली गई । अब तो उन लोगो का रोज का रूटिन बन गया था । रोज आना बातें करना , पेड़ पर चढ़कर अमरुद तोड़ना । अब तो उन लोगों से अच्छी दोस्ती हो गई थी ।
तभी रक्षाबंधन का त्यौहार आया तो वो सब राखी बाँधने आई ,मुझे याद है । मैने अपनी गुल्लक तोड़कर उन सबकों सारे पैसे दे दिये थे । जो मैने अपने भाई को जन्मदिन का तोहफा देने के लिये जमा किये थे । पर उन लोगों की आँखों में जो ख़ुशी और प्यार की चमक थी । उसके सामने किसी तोहफे की कोई कीमत नही हैं । ख़ुशी – ख़ुशी
समय कट रहा था । पर एक गड़बड़ हो गई । गाँव के कुछ लफंगे लड़के रास्ते में खड़े होकर उन लड़कियों को घूरा करते थे । इतना तक तो ठीक था । पर एक दिन तो हद हो गई एक लड़के ने सरवणी का हाथ पकड़ लिया । लड़कियां डर के मारे भागने लगी । पर तभी एक चाचा जी आ गये । उन्हें देखकर लड़के भाग गये । छोटी – मोटी घटना समझ सब भूल गये । पर हैवानियत जब सर पर सवार होती है। इंसान सही – गलत का फर्क नही कर पाता यही हुआ था उस लड़के के साथ भी ।अब तो उसने ठान लिया था कि वो सरवणी को पाकर ही चैन लेगा । अब उसकी गन्दी हरकते बढ़ने लगी थी । लड़की का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया था । अब वो कई – कई दिन तक नही आती थी ।आती भी तो मुरझाया चेहरा लेकर । उसने सारी बातें घर में सबको बताई थी । एक दिन तो उसने उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की । ये बात गाँव भर में फैल गई । पंचायत हुई । लड़के को माफी मांगने को कहा गया ।पर नही माना । खैर दवाब में आकर माफी मांगी । अब तो वो घायल शेर की तरह हो गया था । बदला लेना हैं । बस …..
जारी हैं …………
नेहा धामा ” विजेता ” बागपत उत्तर प्रदेश