,पता नहीं कब से मैं उसे यूं ही देख रही थी ,पिताजी कहते थे कि उनके दादा से पहले का है।
विशाल बूढ़ा बरगद जिसकी शाखाएं जमीन तक लटक रहीं हैं।पक्षियों का घोंसला ,कलरव करते आते जाते पक्षी,छोटे बड़े सभी को अपनी बाहें फैलाए आश्रय देता ।
गिलहरियों की कूद फांद,न जाने कितनी लताओं को मुस्कुरा कर प्रश्रय देता बरगद, जिस प्रकार परिवार का मुखिया अपने कुनबे की सुख शांति और बढ़ोतरी देख प्रफुल्लित होता है ।
बरगद की जड़ें जमीन के अंदर जाकर जल और भोजन एकत्रित करती हैं ,और पेड़ को मजबूती और ,वातावरण को शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करती है।
वैसे ही हमारा परिवार बड़े बुजुर्गों को देख रेख में निश्चिंत रहता है।कहते हैं ना परिवार को एक मोती में पिरोने का दायित्व घर के बड़े बुजुर्ग को होता है।बिखरा परिवार हमेशा टूट जाता है ।
मैं अक्सर उसकी छांव में बैठ बहुत सकूं महसूस करती ,उसके गले लगती ,मुझे बताया गया था , कि पीपल ,और बरगद के पुराने वृक्ष बहुत सारी ऑक्सीजन देते हैं,वह मुझे देख मुस्कुरा उठता।
मैं उससे बातें करती ,घर की सारी उलझनों को उसे सुनाती ,वो बड़े धैर्य से मेरी बातें सुनता ,जैसे कोई बुद्धिमान बुद्धिजीवी किसी की बात को सुन जवाब देता हो।
आज वो बहुत खुश था ,मैने कहा _क्या बात है दादा आप बहुत खुश हो !
उसने कहा तुम्हें पता है ! ,कल वट सावित्री की पूजा है , सुहागिने कल मेरे वृक्ष के पास जुटेंगी । घर परिवार , सास बहू की बातें करेंगी ,नई सुहागिनें अपने पतियों के बारे में चटखारे लेकर सहेलियों से बताएंगी।
मुझे बड़ा मजा आता है।
वाह,दादा आप तो बड़े चुलबुले हो, मै हंस पड़ी।
कुछ दिन बाद मैं शहर चली गई,वहां जाकर मैं अपनी पढ़ाई में मशगूल हो गई।
कभी कभी उलझनों में अपने बूढ़े बरगद को याद कर लेती।
सालों बाद गांव आ रही ,बहुत कुछ बदला हुआ था।
घर में चाचा , ताऊ,चाची , मां ने स्वागत किया।
सभी चचेरे भाई ,बहन पढ़ाई के सिलसिले में बाहर ही थे । मैं फिर अकेली ,अगले दिन चल पड़ी, सकून की तलाश में अपने साथी,बूढ़े बरगद से मिलने ।
अरे ये क्या यहां तो बच्चों का स्कूल खुल गया। मैं इधर उधर ढूंढ रही थी ,कहां है मेरा साथी।
मैने वहां स्कूल के बच्चों से पूछा तो पेड़ के नाम पर वो हंस पड़े। मैं इधर उधर देखकर वापस घर लौट आई।घर आकर मैं उदास एक कोने में बैठी थी।चाची और उनकी बहू मेरे पास आईं उन्होंने मेरी उदासी का कारण पूछा?
मैने कहा , गांव के बाहर जो बूढ़ा बरगद था वो कहां गया ?
उन्होंने बताया कि सरकार को स्कूल बनाना था ,तो बरगद के पेड़ को काटना पड़ा।
मुझे रोना आ गया ,क्या उसे काटना जरूरी था? भले ही नौनिहाल स्कूल जाकर शिक्षा ग्रहण करेंगे , देश के अच्छे नागरिक बनेंगे,लेकिन जब वे बरगद के नीचे बैठ क्लास के टीचर की ,दोस्तों की बातें करते ,टिफिन खाते कोई उसकी टहनियों से निकले जड़ों से झूला झूलता तो कितनी खुशी मिलती ।
बूढ़े बरगद ने अपनी बाहें फैलाए सबका स्वागत ही किया लेकिन आज उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए। कट कर भी वो सबके काम आया।वो मर कर भी जिंदा रहा,लेकिन हमने कितना कुछ खो दिया।
समाप्त