ग़रीबी नें बाँध रखीं हैं
हमारे पैरों में बेड़ियाँ ,
खाने के लाले लगे
कैसे पढ़ायें बेटे बेटियाँ ।
झुग्गी झोपड़ी में जीवन काँट रहे,
ज़िंदगी की कड़वाहट आपस में बांट रहे ,
दुखों के दरिया मे बहते हुये,
हम अपने आसूं किसी तरह पोंछ रहे हैं।
अब इंतेज़ार है कोई मसीहा आये ,
इस दर्द भरी ज़िंदगी से हमें निजात दिलाये ,
हैं हम तैयार मेहनत मशक्कत करने को ,
कोई रोज़गार हमें दिलाये ।
हुमा अंसारी