तार्किक लोग तर्क देते हैं कि सामाजिक रूप से कम सक्षम लोगों को परिवार नियोजन के सिद्धांत का पालन करना चाहिये। पर यथार्थ में हमेशा इसका विपरीत ही होता है। अच्छी सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग कुछ ही संतान में संतोष कर लेते हैं। पर कमजोर तबके के लिये संतान पैदा करते रहना एक खेल सा ही है। अशिक्षा को इसका कारण मानने बाले संभवतः यह नहीं जानते कि ईश्वर की इस सृष्टि में अशिक्षित कोई भी नहीं है। सभी  सोच समझने में सक्षम हैं। यह अलग बात है कि परिस्थितियों में पृथकता उनकी सोच को अलग कर देती है।
  परिवार नियोजन के विषय में कालीचरण और उसकी पत्नी जमुना की सोच वही थी जैसी कि कल्पना की जा सकती है। शायद इसी के कारण आज उनके दो बेटे और दो बेटियां धरा पर मौजूद हैं। उनके कितने बच्चे पैदा होते ही भगवान को प्यारे हो गये और कितने जीवन के एक वर्ष भी न जी पाये, इस विषय में अधिक चर्चा करना उचित नहीं है। सचमुच अशिक्षित भी पूरी तरह अशिक्षित नहीं होते।
   बेटियां पंद्रह साल की होते होते शादी कर ससुराल विदा कर दी गयीं। बहुएं भी घर में जल्दी आ गयीं। बेटियों के विवाह से जितना परिवार घटा, बहुओं के आगमन से उतना ही बढ गया। फिर जल्दी जल्दी नाती, नातिनों के आगमन से घर वास्तव में एक सराय जैसा हो गया।
  जब से ठाकुर साहब अपने परिवार समेत शहर में रहने लगे, कालीचरण को बहुत आराम हुआ। एक तो हवेली की देखभाल के लिये उसे ठाकुर साहब से पैसे मिल जाते। हवेली का ज्यादा काम रहा नहीं। अब वह दूसरे घरों में मजदूरी कर और पैसा कमाने लगा। औरत, बेटे और बहुओं का भी यही हाल था। घर के काम के लिये घर में एक औरत रह जाती। शेष सभी जहाँ मजूरी मिलती, करते। फिर कुछ पैसे जमा कर दो भैंस भी खरीद लीं। जिन्हें बांधने के लिये भले ही कालीचरण के घर जगह न थी पर हवेली में जगह की क्या कमी थी।
  दोपहर के बक्त कालीचरण घर पर  पहुंचा। छोटी बहू रसोई बना रही थी। पर्दा जैसी बातें ऊंची जाति विरादरी में होती हैं। जिन्हें खाने के भी लाले हों, उनके लिये ऐसी बातें महत्वहीन हो जाती हैं। वैसे भी यदि बहू, ससुर के साथ मजूरी करने जाये तो बिना बोले काम चलता भी नहीं है। पर्दा की अवधारणा वहीं ध्वस्त हो जाती है।
  ” अभी जमुना नहीं आयी।”
  ” अम्मा को आज पंडितानी ने काम पर बुलाया है। बोल गयी थीं कि आने में देर हो जायेगी। जीजी भी साथ गयीं हैं।” सुरैया ने खाना परोसते परोसते कह दिया। फिर कालीचरण चुपचाप खाना खाने लगा।
  दो लड़कियां दो छोटे लड़कों का हाथ थामे घर में घुसीं। वैसे लड़कियां भी कोई बड़ी नहीं थीं। सौम्या चौदह साल की और दया तेरह साल की। पर कालीचरण के परिवार के हिसाब से अब शादी लायक हो चुकी थीं। दोनों चचेरी बहनों में बहुत स्नेह था। साथ साथ पाठशाला जातीं। रास्ते में बाग के आम तोड़तीं। लंगड़ी टांग का खेल खेलतीं। लगता कि जैसे दुनिया में और कोई काम ही न हो।
  कालीचरण को लगता कि अब नातिनें बड़ी हो रही हैं। इन्हें कामकाज की शिक्षा देनी चाहिये। जमुना से वह जिक्र भी कर चुका था। पर अभी तक उसका कहा हुआ नहीं था।
  कालीचरण को आज सौम्या ज्यादा बड़ी लग रही थी। अब एक दो साल में विवाह कर देना है।
” सुरैया । तुझे तेरी अम्मा ने कुछ नहीं बोला।”
बहू सोचने लगी कि दद्दा किस की बात कर रहे हैं। समझ नहीं पायी।
  ” अब लड़कियां कब तक पढाई करेंगीं। पढकर भी तो यही काम करने हैं। मैं तो अब जल्द इनका व्याह करने की सोच रहा हूँ। अभी से देखना शुरू करूंगा तब जाकर कहीं एक दो साल में सही घर परिवार मिलेगा। “
  सुरैया ससुर की बात समझ गयी। खुद वह पढी लिखी नहीं थी। फिर भी वह लड़कियों को पढाना चाहती थी।
  ” दद्दा। शादी की इत्ती जल्दी क्या है। “
” अरे ।सौम्या पूरे चौदह की हो गयी है। अब कौन सा जल्दी है। “
   दोनों लड़कियों को पढाई अपनी दुश्मन लगती थी। वह तो कभी का पाठशाला जाना बंद कर देतीं। पर सुरैया के कारण ऐसा नहीं हो पाया। दादा का प्रस्ताव उन्हें बहुत अच्छा लगा। चाहे शादी का बहाना हो या कुछ और बस पढाई से जान छूटनी चाहिये। वैसे भी गांव में अभी तक जिन लड़कियों को वह पढा लिखा मानतीं थीं, उन्हें भी कुछ अलग करते नहीं देखा था। खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलता है। पर जब कोई खरबूजा पका ही न हो तब रंग बदलने की धारणा भी सही नहीं होती।
   दोनों लड़कियां पढाई से आजादी के स्वप्न देख रही थीं। इस बात से अनजान कि यह कोई आजादी नहीं है। बल्कि नवीन गुलामी का आरंभ ही है। असहाय सुरैया खुद को कुछ करने में लाचार पा रही थी।
   कालीचरण हवेली के लिये निकल गया। देखा कि मालिक की गाड़ी हवेली पर खड़ी है। तुरंत भागकर हवेली में पहूंचा। ठाकुर रोशन सिंह अपने कुछ खास मित्रों के साथ आये थे। कालीचरण ने दूर से ही जमीन पर सर रख अभिवादन किया। जैसे कि वह बचपन से करता आया था।
  “कालीचरण। आज एक खास काम से आया हूँ। तुम्हें एक जरूरी काम सोंपना है।”
  आज मालिक ने पहली बार उसे कालिया के स्थान पर कालीचरण बोला। भावातिरेक में कालीचरण की आंखों के कौने गीले हो गये। मालिक से इतना अधिक सम्मान पाने का वह अभ्यस्त न था।
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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