कालीचरण ने बहुत से रिश्तेदार इकट्ठे कर लिये। सैरावत के घर पंचायत बैठी थी। ऐसी पंचायतों में कुछ को अपना रौब दिखाने का, समाज में अग्रणी बनने का मौका मिल जाता। अक्सर सही गलत की बात महत्वहीन हो जाती। जो पक्ष ज्यादा खुशामद कर पाने में समर्थ होता, ज्यादातर लोग उसी के पक्ष में बोलते। फिर खुशामद का परेशानी से सीधा संबंध होता है। दया से परेशानी तो कालीचरण को ही ज्यादा हो रही थी। वही दोनों पक्षों के रिश्तेदारों को इकट्ठा कर लाया था।
” भाइयों। मेरी बात में कुछ भी गलत लगे तो मुझे फटकार देना। सही बात है कि मेरी नातिन दया सैरावत जी के छोटे बेटे को ब्याही। इससे पहले भी मेरी बड़ी नातिन भी इनके ही बड़े बेटे को ब्याही है। आप ही बताइये कि शादी के बाद बेटी का मायके में क्या काम। डोली उठने के बाद फिर अर्थी ससुराल से ही उठती आयी है। इसमें कौन गलत बात है। “
कालीचरण की बात पर कोई अपना मत व्यक्त करता कि उससे पहले सैरावत बोल उठे।
” मना किसने किया है। आपकी नातिन खुद ही तो मायके जाकर रहने लगी। वह ससुराल आ जाये। यहाँ रहे। “
” हाॅ। सही तो बात है। ” सैरावत के पक्षधर बोलने लगे। कालीचरण को अपनी मेहनत व्यर्थ जाती लगी।
” हाॅ भाई। पर सबाल है कि लड़की अपनी ससुराल में क्यों नहीं रह रही। इसकी भी बजह तो है। भला कौन सी लड़की विवाह के बाद मायके में रहना चाहेगी। जब तक कि उसे ससुराल में कोई कष्ट न हो। “
” क्या कष्ट है उसे। हमारे घर से तो किसी ने उससे कभी कुछ बोला ही नहीं। वास्तव में तो मेरी घरबाली को दया बहुत ज्यादा पसंद है। उसी ने तो दया को अपनी बहू बनाया है। कौन सी उसकी इच्छा पूरी नहीं की। अभी तक बड़ी बहू एक दिन के लिये भी लड़के के पास नहीं गयी। पर छोटी को उसके आदमी के पास शहर रहने भेजा। अब विधि का विधान। उसका आदमी और मेरा बेटा ही भगवान को प्यारा हो गया। “
” ऐसा नहीं है सैरावत जी। सही बात तो यह है कि जैसे ही दया विधवा हुई, आपका उसके लिये स्नेह भी वैधव्य को प्राप्त हो गया। उसका ससुराल में दिन गुजारना ही मुश्किल हो गया। “
” यह झूठ है कालीचरण जी। आपकी बड़ी नातिन भी हमारी बहू है। वह सबको सच बता सकती है। दया के साथ कभी भी कोई पक्षपात नहीं हुआ। “
रिश्तेदार दोनों की बातों को अभी तक शांति से सुन रहे थे। अभी तक सभी चुप थे। पर यदि सभी चुप रहें तो उनके आने का क्या मतलब। हीरामल कुछ पैंसठ साल के, सभी की घर गृहस्थी में पंच बनने बाले, यह दूसरी बात थी कि उनकी उनके घर में ही कोई बकत नहीं थी। फिर दूसरों के मामले सुलझाने में ही अपने चीखने चिल्लाने का कोटा पूरा कर लेते। जरा तेज आबाज में बोले –
“अच्छा। बड़ी लड़की अगर सच बोल गयी तो फिर तो तुम उसे घर में जीने दोंगें। अगर छोटी लड़की को मायके में परेशानी ना होती तो वह बाप के द्वारे काहे पड़ी है। आखिर बताओ कि इतने बक्त में तुमने कौन सी उसकी जिम्मेदारी उठाई है। आखिर बहू तो आपकी ही है।”
शांताराम कुछ नाटे कद के, रंग एकदम कृष्ण वर्ण, भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त, जीवन में काफी समय एक वकील के मुंशी रहे थे। वकील साहब के कागज तैयार करते करते रिश्तेदारों के बीच वकील साहब की इज्जत पा गये। वकील साहब अपना कानूनी ज्ञान बखारने लगे।
” वैसे तो लड़के के हिस्से की जायदाद पर उसकी विधवा का ही हिस्सा होता है। मुझे तो नहीं लगता कि सैरावत जी ने लड़की को उसका हक भी दिया होगा। अगर अदालत में मामला पहुंचा तो सैरावत को ज्यादा भारी पड़ेगा।”
अदालत का नाम सुन सैरावत जरा नरम पड़े। कोर्ट कचहरी से कुछ डरते थे। वैसे जानते थे कि दया को अदालत से हक भी सालों में ही मिलेगा। वैसे कोई जरूरी भी नहीं है कि उसे कोई अधिकार मिल पाये। पर बेबजह की मुकदमेबाजी से घर चौपट ही होता है। कभी कभी जरा सी समझदारी से बड़े से बड़े काम आसान हो जाते हैं।
आंखों में जरा आंसू बहा सैरावत कहने लगे।
” सही कहा है कि विपत्ति कभी अकेले नहीं आती। कितने अरमानों से बेटों की शादी की। कैसे कैसे रिश्ते आये थे। कितने रईसों ने संपर्क नहीं किया। पर हमने साफ ना कर दिया। ज्यादा रईस परिवारों से रिश्ता करना ही नहीं था। धन दौलत तो हाथों का मैल है। दहेज की नहीं पर सम्मान की चाह थी। कालीचरण जी के परिवार में ऐसी बात लगी। उनकी दोनों नातिनों को अपनी पुत्रवधू बनाया। बहुओं को हमेशा बेटियों की तरह रखा। आज जब जुगनू हमें छोड़ गया, किस किस तरह की अपमान जनक बातें सुनने को मिल रही हैं। लगता है कि सारे कर्मफल एक साथ हमारे जीवन में हमारी परीक्षा ले रहे हैं। ठीक है फिर। परीक्षा की घड़ी में इस संसार से क्या आशा। जिनपर पूर्ण विश्वास था जब वही हमारे विपक्ष में खड़े हैं, फिर दूसरों से कैसी आशा। विधि ने जितना कष्ट निर्धारित किया है, वह तो भोगना ही होगा। व्याधि, मुकदमे आदि तो मात्र बहाने हैं। ईश्वर हमारी मदद करें। “
सैरावत ने एक तीव्र स्वांस छोड़ सारा माहौल खुद के पक्ष में कर लिया। खुद की अभिनय क्षमता पर उन्हें अधिक विश्वास न था। पर जब परिणाम सकरात्मक रहा तब संदेह करने की क्या आवश्यकता।
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’