जब सागर से उठकर कहीं बहुत दूर मेघ बरसते हैं तब कुछ का मन मयूर नृत्य करने लगता है। अच्छी खेती की आशा में बादलों की राह देख रहे कृषकों के घरों में सावन के तराने गाये जाते हैं। वहीं एक कुंभकार परिवार जल्द से जल्द बादलों के हटने की राह देखने लगता है। एक ही प्राकृतिक घटना सभी पर अलग अलग प्रभाव दिखाती है। 
  दया विवाह होकर ससुराल पहुंची तो उसे सौम्या की बतायी बातें एकदम झूठ प्रतीत हुईं। इतनी स्नेहमयी सास कि उसे किसी काम से हाथ न लगाने दें। रोज निकट बिठा परेशानियों के विषय में पूछतीं।दया को लगा ही नहीं कि वह विवाह के बाद अपनी ससुराल में आयी है। 
  रूप का आकर्षण ही कुछ ऐसा होता है कि जुगनू जो आवारा के नाम से बदनाम था, अब अक्सर घर में रहता। घर पर भी कठोर पुरुष न बन एक सहयोगी पति था जिसे पत्नी के साथ छोटे मोटे कामों को करने में भी परहेज न थी। हालांकि जुगुनू का कोई धनोपार्जन के लिये प्रयास न करना दया को जरूर अखरता था। पर इतनी सी बात के लिये किसी आदमी को बदनाम कर देना तो कभी उचित नहीं है। पुरुष तभी प्रयास करता है जबकि उसके ऊपर जिम्मेदारी आती है। जिम्मेदारी मिलने के बाद वह कभी भी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटता है। और यदि हटता भी है तो स्त्री उसे उसकी जिम्मेदारी का अहसास करा सकती है। 
  सौम्या का पति मोहन जो रविवार को और छुट्टियों में ही घर आता था, अक्सर शहर से कुछ न कुछ लेकर आता। सौम्या के साथ साथ दया के लिये भी बराबर उपहार लाता। दया मोहन को जीजाजी कहकर बुलाती थी। इस बात से अनजान कि यह उसी के रूप का जादू है कि जिस पुरुष ने कभी भी अपनी पत्नी की कद्र नहीं की, आज एक उदार पुरुष का रूप रख रहा है। मोहन के मन की कुभावना से अपरिचित दया अपने उस निर्णय पर हर्षित थी जबकि उसने सौम्या की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया था। 
  दया को घर पर सब ठीक लगता सिवाय सौम्या के। सौम्या ही उसे घर के कामों को करने को बोलती थी। दया अक्सर उसके आदेशों को सुन अनसुना करती। सौम्या जगकर बाहर आने के लिये आवाज लगाती और दया सुनकर भी नींद लेने लगती। सौम्या खाने में दाल बनाने को बोलती तो दया तरकारी बना देती। वह भी बिलकुल अलग अंदाज से कि सब उसके खाने की तारीफ करें। 
  अब दया को लगने लगा कि सौम्या ने उसे जिन बातों में उलझाया था, वे सब सिवाय झूठ के कुछ भी नहीं थीं। इतने सुखद जीवन की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। सिबाय एक बात के कि उसका पति जुगनू कोई काम नहीं करता है। अपने जीवन की इस एकमात्र कमी को दूर करने से अधिक उसके लिये सौम्या की बात को गलत सिद्ध करना अधिक जरूरी था। 
  सत्य है कि एक स्त्री के संकल्प के सामने ईश्वर भी कुछ नहीं कर सकते। मन के भाव कुछ भी हों पर उत्तम उद्देश्यों के लिये किये प्रयास हमेशा अपना लक्ष्य पाते ही हैं। मन के कुभाव अक्सर उन लक्ष्यों की ऊंचाई के सामने अदृश्य हो जाते हैं। दुनिया हमेशा सफलता की गाथाओं को याद रखती है। फिर भी मन के कुभाव बिलकुल छिपे रहते हैं, क्या यह सत्य है। संभवतः नहीं। कभी कभी वे कुभाव भी विभिन्न कर्मफलों के माध्यम से सामने आ जाते हैं। 
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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