बेबस बेहिसाब किस्सा है,
जिसका
बरकत के समंदर में नहीं कोई
, हिस्सा
हैसियत से नहीं रहता है,
अंजान
हसरतों का नहीं बनाता कोई,
जाल
हुनर की इनकी गरज सुनता नहीं आसमां
हासिल नहीं हो पाती कभी हसीन हयात
फिर भी हैरत में डाल देता इनके जीने का जज्बा
फरियाद फलक तक जाये
ना जाये
फरिश्तों के फितूर के आगे होते नहीं फना
रेशमी राब्ता जमीं से ही
रखता है,
गमों के परछाईयाँ भी हिला ना पाई जिसे
नवाजिश भरी तुम्हारी निगाहों की गुंजाइश नहीं इसे
ये गरीब तो मेहनत से अपनी तकदीर मुकर्रर करता है।
शैली भागवत ‘आस’