रेशमी कलम  से लेख लिखने वाले
तुम भी अभाव से ग्रस्त कभी रोए हो
बीमार बच्चे की की दवा जुटाने मे
क्या घर पर तुम भी पेट बाधकर सोए हो
देखा है गाँव की अनेक सभाओ को
जिन पर आभा की धुल अभी तक छाई है
रेशमी देह पर जिन अभागिनो की
रेशमी वस्त्र चढ़ नहीं पाई है
असहाय किसानों की किस्मत में
अनायास जल मे बीज बोते देखा है
क्या खाएंगे यह सोच के पागल 
बेचारे को नीरब रह जाते देखा है
नगरों के लाल, अमीरी के पुतले
क्यों व्यथा भाग्यहीनो  की मन मे लाओगे
भूख से तडपता उनका परिवार
दौड दौडकर कैसे ये आग बुझाएगा
कुटिल व्ययंग दीनता वेदना से अधिर
आप जिन का नाम दिन रात जपती है
है बेकल सारा देश अभाव के तापों में
फुटपाथ पे सोते आसमान की नरम रजाई में
सर्दियों में सर्द हवाएँ चलती
चल रहे गाँव कूंजो के झकोर
होती जाती है गर्म दिशाओं की सांसे
मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली
हो रही फिर सेनाएँ काली काली
मेघों मे उभरे नए गजराजो की
फिर नये गरूड़ उडने को पंख तोल रहे 
फिर झटक झेलनी होगी नूतन बाजो की
रंजना झा
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