अपर्णा अपने कमरे में बैठी धूप सेकते हुए सब्ज़ियां काट रही थी कि तभी अनु रोते हुए कमरे में आई।
“क्या हुआ बच्चा? तू रो क्यों रही है?” अपर्णा ने पूछा।
“परीना बहुत गंदी है। वो मेरी दोस्त नहीं है। आज उसने बाकी सब लड़कियों के साथ मिलकर मेरा बहुत मज़ाक उड़ाया। मैं डांस में कमज़ोर हूं और वो डांस कॉम्पीटिशन के लिए सलैक्ट हो गई है। इसलिए ज़्यादा इतरा रही है।” अनु ने रोते हुए कहा।
“अनु, बिटिया, यदि वो आपका मज़ाक उड़ाती है तो सही मायने में वो आपकी दोस्त है ही नहीं।” अपर्णा बोली।
“मां, कैसे जाने कि कौन हमारा सच्चा दोस्त है और कौन नहीं!” अनु ने पूछा।
“बेटा, जिस तरह पति-पत्नी के बीच सात वचन होते हैं जिन्हें उनको निभाना होता है। उसी तरह दोस्ती के भी सात वचन होते हैं। जो हमें निभाने होते हैं। जो ये वचन निभा लेता है वहीं हमारा और हम उसके जीवन भर के दोस्त बन सकते हैं।” अपर्णा बोली।
“दोस्ती के साथ वचन? ये तो कुछ नया है! मम्मी बताएं इसके बारे में कुछ और प्लीज़।” अनु ने कहा।
“बेटा दोस्ती का पहला वचन होता है:-
अपने दोस्त को सदा उसकी कमियों से अवगत कराना।”
“वो तो दुश्मन होते हैं जो कमियां बताते हैं। दोस्त कभी कमियां नहीं बताते। वो केवल हमारी अच्छाई बताते हैं।” अनु ने कहा।
“नहीं बेटा, आपकी कमियों से आपको एक सच्चा दोस्त ही अवगत करा सकता है। जिससे आप उसे सुधार सको। दुश्मन आपको कभी आपकी कमी नहीं बताएगा। बता देगा तो आप उसे सुधार नहीं लोगे। जब मैंने लिखना शुरू किया तब मेरी दोस्त हर्ष ने मेरी कहानियों में कमियां बताईं जिसे मैंने सुधारने की कोशिश की। यदि वो मुझे मेरी कमियों से अवगत नहीं कराती तो मैं उसे सुधार आगे अच्छा कैसे लिख पाती। मेरे प्रतिद्वंद्वियों ने केवल सराहना की। कमियां तो उन्हें भी दिखीं थीं। पर यदि वो बता देते तो मैं उसे ठीक कर उसमें पारंगत ना हो जाती।” अपर्णा ने अनु को समझाया।
“हम्मम, आप ठीक कह रहे हो मां। अगला वचन क्या है?” अनु ने उछलते हुए पूछा।
“दोस्ती का दूसरा वचन है :-
अपने दोस्त को रोने के लिए कंधा देना।”
“हैं? क्या मां आप भी! एक दोस्त दूसरे दोस्त के आंसू पोंछता है या उसे रोने के लिए कंधा देता है।” अनु ने हैरानी से कहा।
“बच्चे, आंसू पौंछनै वाले तो हज़ारों मिल जाएंगे। पर कंधा देने वाला नहीं मिलता। जब हमारे दिल में किसी बात को लेकर बहुत गुब्बार भरा होता है तो हमें अपने गुब्बार को निकालना पड़ता है। सबसे अच्छा माध्यम होता है उसे रोकर निकालना। और यदि एक दोस्त उस वक़्त आकर हमारा सिर अपने कंधे पर रख कर बोले कि रो ले दोस्त जितना रोना है रो ले। तो उससे बेहतर दोस्त कोई और नहीं। जब मैं अपने घर की परेशानियों से बहुत भर जाती थी तो मैं प्रीति के घर जाती थी। और घंटों उसके कंधे पर सिर रखकर रोती रहती थी। मन हल्का हो जाता था तो घर लौट आती थी। आज वो मुझसे दूर है तो अकेले रोना पड़ता है। उसके कंधों को हमेशा मिस करती हूं।” अपर्णा की आंखों में आंसू थे।
“आज से आपको प्रीति मासी को मिस करने की ज़रूरत नहीं है मां। आज से मेरे कंधे पर सिर रखकर आप अपना मन हल्का कर लीजिएगा।” अनु ने अपर्णा को गले लगाते हुए कहा। “तीसरा वचन क्या है मां।”
दोस्ती का तीसरा वचन:-
अपने दोस्त के हर सुख-दुख में उसके साथ एक स्तंभ के रुप में खड़े रहना।
“किस प्रकार का सुख-दुख मां?” अनु ने पूछा।
“बेटा, जब भी हमारे दोस्त पर कोई विपदा आए, चाहे वो शारीरिक हो, पारिवारिक हो या फाइनेंशियल हो, एक सच्चा दोस्त हमेशा अपने दोस्त के साथ खड़ा मिलता है। जब हमारे परिवार पर फाइनेंशियल विपदा आई थी तो मेरे दोस्तों ने मेरा बहुत साथ दिया था। खासतौर से प्रियंका आंटी ने। बहुत साल बाद जाकर मैं उसका क़र्ज़ उतार पाई थी। पर उतने सालों में उसने कभी मुझसे उस बारे में ज़िक्र तक नहीं किया था।” अपर्णा की आंखों में अपनी दोस्त के प्रति कृतज्ञता साफ दिखाई दे रही थी।
“चौथा वचन क्या है मां?” अब अनु और ज़्यादा उत्साहित हो गई।
“दोस्ती का चौथा वचन:-
सच्चा दोस्त अपने दोस्त की सफलता से दिल से खुश होता है और असफलता में उसके साथ होता है।”
“वो तो हर दोस्त खुश होता है। पिछले साल जब मैं फर्स्ट आई थी तो मेरे सभी दोस्त बहुत खुश हुए थे। मुझे खूब फूलों के गुलदस्ते दिए थे। सभी तो खुश थे!” अनु ने कहा।
“और इस बार जब तू टॉप तीन में भी नहीं आई थी और एक महीने तक उदास बैठी रही थी, तब उनमें से कितनों ने तेरा साथ दिया था? तुझे उस दुख से बाहर निकलने में मदद की थी? इसका जवाब तू खुद को ही देना।” अपर्णा बोली।
“पांचवां वचन क्या है?” अनु ने पूछा।
“दोस्ती का पांचवां वचन है:-
सच्चा दोस्त वही है जो बिना बोले अपने दोस्त के मन के भावों को समझ जाए”
“मम्मी, दोस्त हैं! गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड नहीं जो मन के भावों को समझ जाए!” अनु हंसते हुए बोली।
“दोस्ती किसी लव स्टोरी से कम है क्या! वो दोस्ती ही क्या, जहां हमें मन के भावों को व्यक्त करना पड़े। सच्चे दोस्त तो एक दूसरे का चेहरा पढ़ लेते हैं। मुझे कभी प्रीति मासी को बताना ही नहीं पड़ता था कि मैं दुखी हूं। वो मेरा चेहरा देखकर ही पहचान जाती थी। और आज भी फोन पर मेरी आवाज़ सुनकर भांप लेती है कि मैं परेशान हूं।” अपर्णा के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी।
“हम्मम, दोस्ती का छठा वचन क्या है?
“दोस्ती का छठा वचन है:-
हम जैसे हैं हमारा सच्चा दोस्त हमें वैसे ही पसंद करेगा। वो हमें हमारी कमियों के साथ एक्सेप्ट करेगा।”
“मतलब? कोई किसी को कमियों के साथ क्यों एक्सेप्ट करेगा?” अनु ने पूछा।
“दोस्ती परफेक्ट इंसान से नहीं की जाती। ना ही दोस्ती में कोई शर्तें होती हैं। हमारे दोस्त में लाख खामियां हों, पर वो हमारा दोस्त है। हम उसे अपने अनुरूप बदलने की कोशिश नहीं करेंगे। हां, वो जहां गलत है वहां उसे सही ज़रुर करेंगे। पर दो सच्चे दोस्त एक-दूसरे को वैसे ही अपनाते हैं जैसे वो हैं। मेरे दोस्त, चाहे वो श्वेता हो, हर्ष हो, प्रीति हो, सब मुझसे अलग हैं। सबमें गुण हैं तो अवगुण भी हैं। पर हमने एक-दूसरे को कभी बदलने की कोशिश नहीं की। एक-दूसरे में लाख खामियां सही, पर हम दोस्त हैं।” अपर्णा ने अनु को समझाया।
“सही कहा आपने मम्मी। बदलना क्यों है? जो जैसा है वो वैसे ही बहुत अच्छा है।” अनु ने मुस्कुराते हुए कहा।
“और दोस्ती का सातवां वचन क्या है?”
“दोस्ती का सातवां वचन है यू जम्प, आई जम्प” अपर्णा हंसते हुए बोली।
“हैं? ये क्या है मम्मी? टाइटैनिक फिल्म का डायलॉग!” अनु ने हैरानी से पूछा।
“बिल्कुल। दोस्त का साथ हर समय निभाना। उसपर आई हर मुश्किल को अपने ऊपर लेना। उसकी मुसीबत में उसे बचाने के लिए कूदना पड़े तो वो भी करना।” अपर्णा ने कहा।
“पता है अनु हमारी एक सहेली है अनीता। उसका परिवार बहुत रूढ़िवादी विचारों का है। जब वो कॉलेज के दूसरे साल में थी तो उसकी शादी तय कर दी। कहा फाइनल इयर करने की जरूरत ही नहीं है। तब श्वेता आंटी ने उसकी दादी का सामना किया और उन्हें समझाया कि शादी भले कर दो पर ग्रेजुएशन करने दो। बहुत हिम्मत चाहिए थी उसकी दादी का सामना करने के लिए पर उसने किया। और आज उसकी वजह से ही अनीता अपने मुश्किल दौर में नौकरी कर पाई।
मेरी सहेली मेरा नाम लेकर अपने बॉयफ्रेंड से मिलने जाती थी। दोस्ती की थी निभानी तो थी। मुझे उसका साथ देना पड़ा। एक दिन वो पकड़ी गई और साथ में मेरी भी क्लास लग गई।” अपर्णा ने बताया।
अनु ने हेरात भरे अंदाज़ में कहा,”हो….तो आपकी दोस्ती टूट गई होगी?”
“बिल्कुल नहीं। हमने मिलकर डांट खाई और अगले दिन मोती स्वीट्स जाकर उसने मुझे डांट खाने के लिए गोलगप्पे खिलाए।” अपर्णा ने हंसते हुए कहा।
“सही बात है। यू जम्प आई जम्प। डांट भी एकसाथ और गोल-गप्पे भी एक साथ।” अनु ने कहा।
“बिल्कुल। अब समझ में आया कि सच्चा मित्र कैसा होता है?” अपर्णा ने कहा।
“बिल्कुल मम्मी, और मुझे मेरा सच्चा मित्र मिल भी गया है।” अनु ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा।
“अच्छा!!! कौन है वो? हमें भी तो पता चले।” अपर्णा ने प्यार से पूछा।
अनु ने उसके गले लगते हुए कहा,”आप!!! आप हो मेरी सबसे सच्ची और अच्छी दोस्त। आप हर वचन निभाते हो। आप मुझे मेरी कमियां बताते हो, अपने आंचल में छुपा कर मुझे रोने देते हो, आप एक पिलर की तरह हमेशा मेरे साथ खड़े रहते हो, मेरी हर सफलता और असफलता में मेरे साथ रहती हो, और पापा की डांट से मुझे बचाते भी हो। तो हुए ना आप मेरे सच्चे दोस्त।”
अपर्णा ने अनु को गले लगाते हुए कहा, “येस माई डॉल। मैं तो पूरी ज़िंदगी आपके साथ एक दोस्त की भांति रहूंगी। हमेशा याद रखना, यू जम्प आई जम्प।”
और दोनों खिलखिला कर हंसने लगी।
समाप्त