उठते बैठते तूने कब कब,कैसे
क्या क्या कहा था मुझसे और 
क्या क्या, कैसे समझाया था, 
हाँ हर वो पल याद हैं मुझे,कि 
तूने कब कब मुझे दुलारा था, 
हर हाल में खुश कैसे रहते हैं 
और स्वाभिमान किसे कहते हैं 
ये पाठ भी तूने मुझे पढाया था,
अपने ही संघर्ष की कहानियों से,
अपने पैरों पर खड़े कैसे होते हैं, 
ये तूने ही तो मुझे बतलाया था,
कभी ना टोका, कभी ना रोका
हर बात में तेरी हाँ थी, पर क्यों
ये बात समझ नहीं पाई थी, पर 
फ़ैसला खुद कैसे करना है, यह 
बात बताने का तेरा किस्सा था, 
हर एक कदम बढ़ाने पर मैं तो 
हरदम ही तो डर जाती थी,पर 
तेरी आँखो का विश्वास देखकर
हँसते हँसते आगे बढ़ जाती थी,
मेरी एक ही तो बेटी हैं,ये कहके 
जब तू प्यार से मुझपर हँसता था
खुद पर ही गर्व करना,सिखाने का 
तेरी परवरिश का ही एक हिस्सा था,
यूँ तो हर बात में तेरी ही याद आती है 
तेरी सिखायी हर बात,कहाँ भूल पाती हैं 
मेरे वजूद से बस,तेरी ही खुशबू आती हैं,
मेरी नजरों में,जो आज तेरी ये इज्जत हैं,
बस एक यहीं ख्वाहिश है मेरी, कि काश 
      मैं भी तुझ सी, बन पाऊँ भविष्य में,
यहीं ख्वाब सजा रखा हो,
                    मेरे बच्चों की भी नजरों ने, 
पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ दादा❤🤗
✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल🌸
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)
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