काव्य-
शीर्षक- “खोया खोया चाँद”

खोया खोया चाँद और खुला आसमान, ढूँढ के लाओ चाँदनी।
देखो! मेघों के ओट में ही बैठा है चाँद, तेज हवाएँ उड़ाएंगी मेघ, निकलेगा चाँद, बिखरेगी चाँदनी।
चमकते सितारें झिलमिला देंगे सारा जहाँ।
खुशनुमा हो रजनी, चकवा-चकवी को देगी मिलन का अनुपम उपहार।
यूँ कुमुदनी का विकसना,रातरानी का महकना ,
गमक उठा, लो धरती आसमाँ, बातों के झुरमुट से निकल, निद्रागोश में प्रिय सपनों के राज खुले।
उनींदी पलकों ने खिलती कमलिनी संग, सूर्योदय की अरुणिमा अपने गालों पर पाई औ स्वागत कर उच्छ्वास के साथ चल पड़ी वह कर्म पथ को, जीवन्त जीवन की राह।यही तो है जीवन,यही तो है जीवन।।
न खोया कहीं चाँद न गुमी है चाँदनी, यह तो है केवल समझ औ समय की रागिनी।।
   रचयिता —
             सुषमा श्रीवास्तव
             मौलिक कृति,रुद्रपुर, उत्तराखंड।

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