साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
कविता
जाना था कहीं, कहीं पर पौंचे।
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
उसकी गुस्सा इस पर थोपे।
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
जब हम लज्जित हो जाते हैं।
गुस्सा और पर दिखलाते हैं।
स्वयं निराश जो हो जाते हैं।
लज्जा छुपा नहीं पाते हैं।
उनको देख के हम यह सोचे।
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
देश पड़ोसी पाकिस्तान।
जिसको कहीं न मिलता मान।
मांगें भीख मिले न दान।
फिर भी न जाने नादान।
आतंकी लिए घर में पाल।
करते हत्या और बवाल ।
सारी दुनिया के ये काल।
आज पाक है खस्ताहाल।
भूख से बिलख रही आबादी।
बातें करते मिथ्या वादी।
तीन बार लड़ कर गए हार।
भीख मांगते है,हर द्वार।
सारा जहां करता इंकार।
बड़े बेशर्म हो सरकार।
काश्मीर अभिमान में पौचें।
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
चीन को संसारी गई चीन।
झूठ कपट छल,दंभ लीन।
देश देखता, कौन है,हीन।
उनकी रहा जमीनें छीन।
बसा नजर में ताईवान।
उसको गया अमरीका जान।
उसको दिया मुंह तोड़ जवाब।
जासूसी का टूटा ख्वाब।
फिर घाटी गलवान में पौंचे।
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
बलराम यादव देवरा छतरपुर
बहुत सुंदर कविता आदरणीय जी।