मैं रात्रि की शीतलता में खिलती हूं
मैं एकांत में जब तुमसे मिलती हूं
व्यस्तता के बहाव से निकल कर
कुछ क्षण मैं जीवित होती हूं
मैं सबसे दूर जब तुझमें होती हूं
धीमी खुशबू के साथ सरल सी मैं
अकेली खिलती हूं
संगम नहीं, मैं मन से सिर्फ तेरी होती हूं
मैं शाख पर हमेशा अकेली आती हूं
मुझे नहीं पता मैं तुम्हें कितना चाहती हूं
सुखी सी डालियां ,मृत हो चुके पत्तों
पर मैं हरियाली चाहती हूं
उसे जीवित करने नित्य यहां
मैं अकेली आती हूं
तन्हा सी अकेली खिली मैं
मौन रह जाती हूं
मुझे नहीं पता की मैं तुम्हें इतना क्यो
चाहती हूं
दिन की तपिश के बाद
मैं रात्रि की शीतलता में खिलखिलाती हूं
मुझ में बसे तुम से मैं जब मिल जाती हूं
धीमी खुशबू के साथ सरल सी मैं
अकेली मुस्कुराती हूं
क्योंकि मैं तुम्हें चाहती हूं…..
…………………………………….. प्रिया प्रसाद ✍️