धुंध कोहरे की रात सी, कट रही जिंदगी हमारी
हर तरफ देखो धुंधला ही धुंधला दिख रहा!!
यहां हर के किसी के सोच में, धुंध की परत सी जम गई!
गलत को सही करने की, होड़ सी देखो लग गई!!
भाई भाई का दुश्मन, है देखो बन रहा !
धुंध कौरव राज का, फिर से यहां है चल रहा!!
मन में आक्रोश का, धुंध भारी है जमा!
हम ही सबसे श्रेष्ठ है, कहते सभी हमने सुना !!
अहंकार के धुंध में चूर सब ,अपनी ही शेखी मारते!
अपने आगे वो कहां ही किसी को आंकते !!
मां बाप को बच्चे, आजकल कहां कुछ है मानते !
अपने दंभ के धुंध में ,क्या क्या न कर वो डालते
अपने सुख के हेतु उनको, वृद्धाश्रम तक हैं छोड़ते!
नफरतों की आग में खुद को ही वो हैं झोकते!!
धुंध छाई हर तरफ,नफरत प्यार या पैसे का
धुंध से घिरी कहानी शोहरत बगावत इबादत का