जीवन के इस रंगमंच में खेल खेलते जाना है
जिसको जो भी मिली भूमिका वैसा पात्र निभाना है
कर्म करो जो हो निष्काम
फल देना ईश्वर का काम
कांटे अगर बिछाओगे तो
फूल तुम्हें क्या देंगे राम
निश कंटक हो राह हमारी
चहूँ ओर उजियारा हो
हर मानव की चाह यही है
कहीं नहीं अंधियारा हो
सुख दुख धूप छांव से होते
सबके जीवन मैं यह होते
पापों की गठरी का बोझा
बारी बारी सब है ढोते
हे मानव तू क्यों घबराए
इस कोहरे की रात से
सारे बिगड़े काम बनेंगे
एक दूजे के साथ से
जो होगा वो अच्छा होगा
भरे रहो विश्वास से
पूरा आसमान टिकता है
बस एक छोटी सी आस से
यह कोहरे की रात तो प्रीति
सब को यूंही सताती है
चलते जाओ बढ़ते जाओ
मंजिल तुम्हें बुलाती है
प्रीति मनीष दुबे
मण्डला मप्र