तेरा शाम का सूरज बन ढल जाना, 
मेरा शबभर यूं भटकना सेहराओं में।
फिर जिस्म तेरी छुअन से जल उठे 
 ये ओस की बूंद
तेरी निगाहों की मीठी-सी शरारत,
मेरे चेहरे से उलझती जाती-सी नजर।
फिर तेरा नेह बनकर यूं बरसना 
  ये ओस की बूंद
बर्फ-सी जम-जम जाती सांसें, 
पिघलती-सी ठहरी-ठहरी शमा-सी मैं।
कंपकपाता, ठिठुरता-सा रोम-रोम 
   ये ओस की बूंद
तेरी चाहतों का ओढ़ कर आसमान,
अपने अरमानों का सुलगा कर अलाव।
सेंक लूं वेणी में गुंथी हुई कुछ उम्मीदें  ये ओस की बूंद
तेरी बातों-बातों में आंचल की नरमी, 
कानों को छूकर निकलता रूहानी स्पर्श।
रंगीन हो जाते स्याही के स्याह रंग
ये ओस की बूंद
कोहरे की चादर में लिपटे कुछ ख्याल, 
धुंध में धुंधलाता सर्द-सा तेरा अक्स।
बिछुड़े को ढूंढता पागल दिल .
ये ओस की बूंद
तेरी यादों की वो जानलेवा अंगड़ाई, 
तुझे ही सोचना, लिखना और गुनगुनाना।
चांदनी-सी खिलती कमसिन हंसी 
 ये ओस की बूंद
 रंजना झा
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