कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है ,जैसे चींटी दीवार पर चढ़ती है गिरती है ,फिर भी नई उम्मीद साहस से लक्ष्य की ओर बढ़ती है।
पैर न हो सपने और इरादे  हों एवरेस्ट फतह करने को तो यह सुन कर ही असंभव लगता है ,क्या ऐसा हो सकता है!
अरुणिमा सिन्हा एक ऐसी लड़की जिसके साथ नियति ने भद्दा मजाक किया था ,उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया था  ,रात भर तड़पती रही और फिर अचेत हो गई ,चूहे उसके पैरों को नोचते रहे।
जब होश में आई तो उसका एक पैर कट चुका था ,एक पैर में रॉड पड़ी थी ,वो दैनिक क्रिया तक करने में अक्षम थी ,एक समय की बॉलीबॉल खिलाड़ी को सहानुभूति चुभती थी ,शारीरिक अक्षमता उसके हौसलों को पस्त नहीं कर सकी।
उसने इसी हालात में एवरेस्ट फतह करने का सपना देख डाला ,कृत्रिम पैर लगवा पहुंच गई जमशेदपुर एवरेस्ट फतह करने वाली महिला बछेंद्री पाल से मिलने,दुनिया ने तो  उसे मानसिक रूप से बीमार तक कह दिया ,लेकिन बछेंद्री पाल ने अरुणिमा के जज्बे को देख कहा तुमने अपने जज्बे से एवरेस्ट फतह कर लिया अब सिर्फ शरीर से फतह कर दिखाना है।
तमाम अड़चने आईं , शेरपा ने उसे ट्रेनिंग और ले जाने के लिए मना कर दिया,स्पॉन्सर की मुश्किल आई ,लेकिन हर मुसीबत को दरकिनार कर 21 मई 2013 को उसने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर एक विकलांग के रूप में फतह पाई।
वो सबके लिए एक  प्रेरणा हैं ,परिस्थितियों के आगे घुटने टेकना कायरता है।
समाप्त
संगीता सिंह
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