दरवाजे पर घंटी बजी ..
मिनल ने अपनी साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछते हुए दरवाजा खोला …
” अरे ओ मीना ….” अवधेश ने गाना गाते हुए मिनल को बाहों में भर लिया और झूम उठा
“अरे.. छोड़ो (डच..डच..) मां देख लेंगी मिनल खुद का चहरा शरमा कर अपने हाथों से छुपाने लगी । ” देखो तुम्हे मेरी कसम …”
मां ने खांसते हुए अपने होने का इशारा दिया, अवधेश ने तुरंत घबरा कर मिनल को छोड़ दिया और मिनल भी घबराहट के मारे बिंदी और बाल ठीक करने लगी ।
” आज तो बहुत खुस लग रहा से बेटा… के बात से बेटा ?”
” मां आप ना… (मन में उठी प्रसन्नता की लहर को थोड़ा दबाते हुए गंभीर मगर फिर भी आंखों में चमक लिए अवधेश मां को बताता है).. मां, आप दादी बनने वाली है ।”
” अरे ये तो खुसी की बात से, माता राणी ने म्हारी बात सुन ली। सात साल से मारे कान ये खुस खबर को तरस गए थे। मैं अभी मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ा आती हूं। सुन, ड्राइवर को बोल गाड़ी निकाले ।”
बस फिर क्या था मां के मंदिर जाने के बाद मौका पाकर अवधेश मिनल के पीछे रसोई में चला
” हम तुम इक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए …” मिनल भी आज खुशी के सातवें आसमान पर थी तो एक गाना उसने भी सुना दिया” मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो ..”
दोनों के जीवन में यह खुशी सात महीने रही फिर एक दिन दुखों ने मिनल के घर पर दस्तक दी ।
मिनल को अचानक दर्द शुरू हो गया डॉक्टर ने रिस्क बताया और फिर ओप्रेशन करना जरूरी हो गया । मिनल में डिलीवरी के बाद खुन की कमी हो गई और फिर बुखार हो गया ।
बच्चे का विकास पूरा नहीं था इसलिए एन आई सी यू में रखा गया ।
दोनों मां बेटे अलग अलग जगह पर थे। घर जैसे तितर बितर हो गया था। मां बच्चे की देखभाल के लिए जाती और अवधेश पत्नी की।
रिपोर्ट्स आने पर पता चला मिनल का खुन सिर्फ पांच प्रतिशत था और वह कोरोना पोजिटिव थी। अब उसे कवोरंटाइन कर दिया गया ।
” डाक्टर, मैं बचुंगी ना… सात साल मैंने जिस पल का इंतज़ार किया है वह पल मैं जी भर कर जी भी नहीं पाई… मैं अपने बच्चे को देखना चाहती हूं। मुझे ठीक कर दीजिए मैं आपका एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी।” मिनल डाक्टर से हाथ जोड़कर बिनती करती है ।
” देखो बेटा हम पूरी कोशिश कर रहे हैं तुम्हारे ट्रीटमेंट में कोई कमी नहीं रखी जाएगी पर हिम्मत तो तुम्हें ही रखनी होगी । ” डाक्टर ने मिनल को कहा ।
दिन पर दिन मिनल की हालत बिगड़ती चली गई उसे वेंटिलेटर पर रखा गया ।
करीब पंद्रह दिन वेंटीलेटर पर रखने के बाद मिनल की रिपोर्ट नार्मल आई। तब जाकर कहीं परिवार को राहत हुई लेकिन नियति की परीक्षा अभी बाकी थी। डाक्टर ने मां को बच्चे से दूर रखने की सलाह दी क्योंकि चौदह दिन का क्वारंटीन पिरीयड अनिवार्य था ।
अब मिनल को मायके भेज दिया गया, मिनल केवल फोन पर ही अपने बच्चे का फोटो देख मन बहला लिया करती, मन ही मन उसे प्यार करती और आशीर्वाद देती । पर हिम्मत नहीं हारी डटकर कठिनाइयों का सामना किया हर वक्त खुद को ठीक होने के लिए सकारात्मक ऊर्जा देती रही ।
और वो दिन आ गया जब उसे लेने अवधेश आ रहा था । आज वह बहुत खुश थी आज वह पहली बार अपने कलेजे के टुकड़े को हाथ में लेगी ।
घर पहुंचते ही मां बच्चे को लिए खड़ी थी क्योंकि एक मां ही दूसरी मां का दर्द समझती है।
मीनल की नज़र अपने बच्चे पर पड़ी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी खुशी को कैसे अभिव्यक्त करे । आंखों से अविरत धारा बह रही थी, होंठों पर मुस्कान पूरी तरह से कांपते हुए उसने अपने बच्चे को बाहों में भर कर खुब प्यार किया …. मां तो मां है… आज मिनल को नया जन्म मिला था ।
नारी शक्ति को प्रणाम जो अपने बच्चों के लिए हर मुसीबत से टकराने का हौंसला रखती है ।
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(deep)
